Book Title: Bhav Tribhangi Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur View full book textPage 9
________________ गाथा में आये "सुत्तुत्तं" पद से दो अर्थ ग्रहण करना चाहिये । सूत्रात्मक ग्रंथों में कथित अथवा तत्त्वार्थ सूत्र में निरूपित मूल और उत्तर भावों के स्वरूप का निरूपण करूंगा। मूल भावों से मुख्य तथा उत्तर भावों से मूल के प्रभेदों का ग्रहण करना चाहिये। विशेष :- भाव किन्हें कहते है ? पदार्थों के परिणाम को भाव कहते हैं। भावनाम जीव के परिणाम का है, जो कि तीब्र मंद, निर्जरा भाव आदि के रूप से अनेक प्रकार का है। ___ द्रव्य के परिणाम को अथवा पूर्वापर कोटि के व्यतिरिक्ति वर्तमान पर्याय से उपलक्षित द्रव्य को भाव कहते है। आचार्य महाराज नेजो यह कहा है कि भावों की प्ररूपणा स्वरूप सिद्धि में सहायक है इस सन्दर्भ में पण्डित टोडरमल जी ने करणानुयोग की उपयोगिता तथा करणानुयोग कैसे कर्म निर्जरा में कारण है इस में विषय कहा है कि- जो जीव धर्म विर्षे उपयोग लगाय चाहैं-..- ऐसे विचार विर्षे (अर्थात् करणानुपयोग विषय उनका) उपयोग रमि जाय, तब पाप प्रवृत्ति छूट स्वयमेव तत्काल धर्म उपजै है । तिस अभ्यास करि तत्त्वज्ञान की प्राप्ति शीघ्र ही है। बहुरेि ऐसा सूक्ष्म कथन जिनमत विष ही है, अन्यत्र नाहीं ऐसै महिमा जान जिनमत का श्रद्धानी हो है। बहुरि जे जीव तत्त्वज्ञानी होय इस करणानुयोग को अभ्यासै हैं तिनको यहु तिसका (तत्त्वनिका) विशेषरूप भास है। सूत्र किसे कहते हैं ? जो थोड़े अक्षरों से संयुक्त हो, सन्देह से रहित हो, परमार्थ सहित हो, गूढ पदार्थो का निर्णय करने वाला हो, निर्दोष हो, युक्तियुक्त हो और यथार्थ हो उसे पण्डित जन सूत्र कहते हैं। णाणावरणचउण्हं. खओवसमदो हवंति चउणाणा। पणणाणावरणीएखयदो दुहवेइ केवलं गाणं॥3॥ ज्ञानावरणचतुर्णा क्षयोपशमतो भवन्ति चतुर्सानानि । पंचज्ञानावरणीयक्षयतस्तु भवति के वलं ज्ञानं ॥Page Navigation
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