Book Title: Bhav Tribhangi Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur View full book textPage 7
________________ 11 भाव "भावोणाम दव्व परिणामो' द्रव्य के परिणाम को भाव कहते हैं। जीव द्रव्य में पांच मुख्य भाव पाये जाते हैं । औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदायक और पारिणामिकाये पाँचोभाव जीब के स्वतत्त्व और असाधारणभाव कहे गये हैं। कारण . है कि ये भाव जीव के अलावा अन्य द्रव्यों में नहीं देखे जाते हैं। इन भावों के भेद-प्रभेद तथा गुणस्थानों में इनका सवभाव निम्न प्रकार से है - क्र.भाव सगरमानमा गुणस्थान 1. औपशमिक भाव 2 भेद 27. क्षायो. सम्यक्त्व . 4-12 1. ओपशमिक सम्यक्त्व 4-11 28. क्षायो. चारित्र (स.चा.) 6-10 2. औपशमिक चारित्र 29. संयमासयम 2. शायिक भाव भेद 4. औदयिक भाव 21 भेद 3. क्षायिक ज्ञान 13-14 30. नरकगति 1-4 4. क्षायिक दर्शन 13-14 31. तिथंचगति 5. झायिक दान 13-14 32. मनुष्यगति 1-14 6. क्षायिक लाभ 13-14 33. देवमति 1. क्षायिक भोग 13-14 3. क्रोध कषाय १. क्षायिक उपभोग 13-1435. मानकषाय 1-9 9. शायिक वीर्य 13-14 36. माया कषाय 10. क्षायिक सम्यक्त्व 4-14 37. लोभ कषाय 1-10 II. क्षायिक चारित्र 12-14 38. स्वीवेद 1-9 3. क्षायोपशमिक भाव 18 भेद 39. पुरुषवेद 1-9 12. मतिज्ञान 4-12 40. नपुंसक वेद 1-9 13. श्रुत ज्ञान 4-12 4. मिथ्यात्य 14. अवधिज्ञान 4-12 42. अज्ञान 1-12 15. मनःपर्यय ज्ञान 4-1243 असंयम 16. कुमति ज्ञान 1.2 44. असिद्धत्व 1-14 17, कुश्रुतज्ञान 1-2 45. कृष्ण लेश्या 1-4 18. कुअवधि ज्ञान I-2 46. नील लेश्या 19. चक्षुदर्शन 1-12 47. कापोतलेश्या 20. अचक्षु दर्शन 1-12 48. पीत लेश्या 1-7 21. अवधि वर्शन 4-1249. पदम लेश्या 22 झायो. दान 1-12 50. शुक्ल लेश्या 1-13 23. झायो.लाम 1-12 5. मारिणामिक भावभेव 24, क्षायो, भोग 1-125. जीवत्व 1-14 25. क्षायो, उपभोग 1-1252. भव्यत्व 1-14 26. क्षायो, वीर्य 1-12 53. अमन्यत्व 1-4Page Navigation
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