Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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गुटिकाप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः
४१
इनके सेवनसे रक्तपित्त, खांसी, श्वास, छर्दि, (से. वि.-१-१ गोली मुंहमें रखकर रस अरुचि, मूर्छा, हिचकी, मद, भ्रम, क्षतक्षय, स्वर- चूसें दिन भरमें १२ गोलीसे अधिक न खावें।) भंग, पुरानी वातव्याधि, रक्त थूकना, हृदय और (५१६३) मरिचादिमोदकः पसलीकी पीड़ा, तृष्णा और ज्वरका नाश होता है। ( यो. र. । अर्श.; हा. सं. । स्था. ३ अ. ११; मध्यपानीयभक्तगुटिका
वृ. नि. र. । अर्श.) (रसे. चि. म. । अ. ९) मरिचमहौषधाचत्रकसूरणभागा यथोत्तरं द्विगुणाः। प्रयोग संख्या ४३२४ पानीयभक्तवटी सर्वसमो गुडभागः सेव्योऽयं मोदकः प्रसिद्धफलः।। (मध्यम ) देखिये ।
काली मिरच १ भाग, सोंठ २ भाग, चीता(५१६२) मरिचादिगुटिका | मूल ४ भाग, और जिमीकन्द ( सूरण ) ८ भाग (यो. त. । त. २८; वृ. यो. त.। त. ७८; वै.
लेकर सबका महीन चूर्ण बनाकर उसे १५ र.; च. द.; यो. र.; वृ. मा.; भा. प्र.; ग. नि.: भाग गुड़में मिला कर (१-१ तोलेके ) मोदक र. र.; भै. र.; वं. से. । कासा; शा, ध.।।
| बनालें।
इनके सेवन से अर्श नष्ट होती है। खं. २ अ. ७; वृ. नि. र.। स्वरभेदा.; यो.
(५१६४) मरिचादिवटा चि. म. । अ. ३) । कर्षः कषांशपलं पलद्वयं स्यात्ततोऽर्धकर्षश्च ।
(वृ. नि. र. । अर्श.; धन्व. । अर्श. ) मरिचस्य पिप्पलीनां दाडिमगुडयावशूकानाम् ॥ मार
| मरिचं खदिरं सारं गैरिकं ताय॒जं तथा । सपिधैरसाध्या ये कासाः सर्ववैद्यनिर्मुक्ताः ।
| समभागानि सर्वाणि सूक्ष्मचूर्णीकृतानि च । अपि पूर्य छर्दयतां तेषामिदमौषधं पथ्यम् ॥
कुक्कुरमर्दकरसैस्त्रिदिनं मर्दयेत् दृढम् ।
| त्रिमाषिका वटी कार्या रक्तजाविनाशिनी ॥ काली मिर्च १। तोला, पीपल १। तोला,
___काली मिर्च, कत्था, गेरु और रसौत समान अनारदाना ५ तोले- गुड़ १० तोले और जवा
भाग लेकर सबका महीन चूर्ण बना कर उसे ३ खार ७॥ माशे लेकर गुड़के अतिरिक्त सब
| दिन कुकरौंदे के रसमें घोटें और फिर ३-३ चीज़ोंका महीन चूर्ण करके उसे गुड़में मिलाकर
माशे की गोलियां बना लें । १-१ माशे की गोलियां बनालें।
___ इन्हें सेवन करनेसे रक्तार्श नष्ट हो जाती है । जिस खांसीको अन्य किसी भी औषधसे
| (५१६५) मरिचाद्या गुटिका (१) आराम न होता हो और जिसे वैद्योंने असाध्य
ग, नि.) गुटिका, ४) कह दिया हो तथा जिसमें पीप आता हो वह भी मरिच पिप्पली पाठा यवक्षारं सनागरम् । इन गोलियों के उपयोगसे नष्ट हो जाती है। एला पत्रत्वचं पथ्या सैन्धवं चाम्लवेतसम् ॥
xकिसी किसी ग्रन्थमें अनारदाना २॥ तोले लिखा है। मधुना गुटिका ह्येषा कण्ठरोगविनाशिनी॥
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