Book Title: Bhagwati Sutra Part 12
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 610
________________ ५९२ भगवतीचे इतिश आहारकद्वारमाह-आहारए' इत्यादि, 'आहारए सव्वत्थ एगत्तेणं सिय चरिमे सिय अवरिमे' आहारकः सर्वत्र एकत्वेन स्यात् चरमः स्वादचरमः, आहारकः सर्वत्र जीवादिपदेषु कदाचिघरमः कदाचिदचरमो विज्ञेयः, यो हि मोक्षं यास्यति स चरमो यो न मोक्षं यास्यति सोऽचरमः, 'पुहुत्तेणं चरिमा दि अचरिमा वि' पृथक्त्वेन चरमा अपि अचरमा अपि। बहुवचनमाश्रित्य आहार काश्चरमा अपि भवन्ति अचरमा अपि भवन्तीत्यर्थः। 'अगाहारओ जीवो सिद्धो य एगत्तण वि पुहुत्तेण विनो चरिमो अचरिमो' अनाहारको जीवः सिद्धश्च एकत्वेनापि पृथक्त्वेनापि नो चरमोऽचरमः,अनाहारकपदे अनाहारकन्वेन रूपेण जीवः सिद्धश्च अचरमो वक्तव्यः, अनाहारकत्वस्य तदीयस्य अपर्यवसितत्वात् जीवश्च सिद्धावस्थ एव ग्राह्य इति, अनाहारको जीवः सिद्धश्च, इमो द्वावपि एकत्वेन पृथक्त्वेन च न चरमोऽपितु अचरम एवेति, हैं १, आहारकद्वार-'आहारए सधस्थ एगत्तेणं सिय चरिमे सिय अच. रिमे" आहार सर्वत्र एकवचन की अपेक्षा से कदाचित् चरम है और कदाचित् अचरम है। जो आहारक मोक्षको जायगा यह चरम और जो मोक्ष को नहीं जाएगा यह अचरम है। 'पुहुत्तेणं चरिमा घि अचरिमा वि' घाषचन की अपेक्षा से भी ऐसा ही कथन जानना चाहिये। 'अणाहारओ जीवो सिद्धो य एमत्तेण विपुलुत्तेण घि नो चरिमो अधरिमो' अनाहारक जीव और सिद्ध एकवचन की अपेक्षा से और बहुवचन की अपेक्षा दोनों अपेक्षाले चरम नहीं हैं किन्तु अचरम है अर्थात् अनाहारक पद में अनाहारक भाव को अपेक्षा जीव और सिद्ध अचरम इसलिये कहे गये है कि उनकी अनाहारक अवस्था अपर्यवसित होती है। सिद्धावस्थ जीव ही यहां गृहीत हुआ है। अनाहारक जीव और सिद्ध ये दोनों भी एकवचन और पहुवचन में चरम नहीं हैं, किन्तु अचरम ही हैं। छूटपाना नथी तथी तमा भयरम छ, मा२६॥२-'आहारए प्रत्यालिमाहीરક એકવચનની અપેક્ષા એ બધા જ ચરમ છે. અને કદાચિત અચરમ છે. જે આહારક મોક્ષગતિએ જશે તે ચરમ છે. જે મેક્ષગતિ નહીં પામે તે मयरम छे. 'पुहुत्ते ण चरिमा वि अचरिमा विमान महुवयनथी ते प्रमाणे छ म समा'. 'अणाहारओ जीवो सिद्धोय एगत्तेण वि पुहुत्तेण वि नो चरिमो नो अचरिमो' भाडा२४ २५ म सिद्ध मे क्यननी अपेक्षाथी भर गई. વચનની અપેક્ષાથી–બનેમાં ચરમ નથી પણ અચરમ જ છે. અર્થાત અનાહારક ભાવપણાથી જીવ અને સિદ્ધ બેઉને અચરમ એટલા માટે કહ્યા છે કેતેઓની અનાહારક અવસ્થા અપર્યવસિત હોય છે, અહિયાં સિદ્ધ અવસ્થા

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