Book Title: Bhagwati Sutra Part 12
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 687
________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०३ सू०२ अन्तक्रियागतनिर्जरापुरलनिरूपणम् ६६९ टोका-'तए णं से मागंदियपुत्ते अणगारे' ततः खलु स माकन्दिकपुत्रोऽन गारः 'उठाए उठेइ उत्थया उत्तिष्ठति 'उहाए उठित्ता' उत्थया-स्वशरीरशक्त्या उत्थाय 'जेणेष समणे भगवं महावीरे' यत्रैव श्रमणो भगवान् महावीरः 'तेणेव आगच्छ।' तत्रोपागच्छति, 'उवागच्छित्ता' उपागल्य 'समणं भगवं महावीरं' श्रमणं भगवन्तं महावीरम् 'वंदइ, नमसई' वन्दते नमस्यति, दित्ता नमंसित्ता' वन्दित्वा, नमस्थित्वा ‘एवं वयासी' एवमवादीत् , क्षमापनां कृत्वा गतेषु श्रमणेषु माकन्दिकपुत्रोऽनगारो भगवत्समीपमागतः आगत्य वन्दननमस्कारादिकं विधाय वक्ष्यमाणपकारेण भगवन्तं प्रति उक्तवान् इति भावः । किमुक्तवान् ? तबाह पहिले जो अन्त क्रिया कही गई । उस अन्तक्रिया में जो निर्जरा पुद्गल है उनकी वक्तव्यता को कहने के लिये सूत्रकार-तए णं से मागंदियपुत्ते अनगारे' इत्यादि सूत्र कहते हैं-'तए णं से मागंदियपुत्ते अणगारे' इत्यादि। __टीकार्थ--'तए णं से मार्गदियपुत्ते अणगारे' इसके बाद वे माकन्दि. पुत्र अनगार' उहाए उठेई' अपनी उत्थानशक्ति से उठे 'उहाए उठेत्ता' और उठकर 'जेणेव समणे भगवं महावीरे' जहां श्रमण भगवान् महा. वीर विराजमान थे-'तेणेव उवागच्छद' वहीं पर पहुंचे। वहां पहुंच कर उन्होंने 'समणं भगव महावीरं वंदह नमंसह श्रमण भगवान की वन्दना की, नमस्कार किया 'वंदित्ता नमंसित्ता' वन्दना नमस्कार करके, 'एवं वयासी' फिर उन्होंने उनसे ऐसा पूछा-अर्थात् क्षमापना करके जय श्रमण जन चले गये तथ मान्दिक पुत्र अनगार भगवान् के પહેલાં જે અંતક્રિયા કહી છે, તે અંતક્રિયામાં જે નિર્જરા પુદ્ગલ છે. ते विषयमा ४थन ४२॥ भाटे सूत्र२ "तए णं से मार्गदियपुत्ते अणगारे" ઈત્યાદિ સૂત્ર કહે છે. टा--"तए णं से मागंदियपुत्ते अणगारे" a पछी ते माहीपुत्र मना२ "उवाए उट्टे" पातानी थानातिथी ध्या. "उदाए उद्विता" भने ही “जेणेव समणे भगवं महावीरे" orii HY मगवान महावीर निभान ता "तेणेव उवागच्छ" त्यो छन तमास "समण भगवं महावीरं वंदइ नमसइ" श्रम सगवान् महावीर स्वामीन नारी नमार या "वंदित्ता नमंसित्ता" पहना नभ७१२ उरीन "एवं वयाती" ते પછી, તેઓએ પ્રભુને આ પ્રમાણે પૂછયું–અર્થાત્ શ્રમણુજને માર્કદી પુત્ર અગાર ભગવાનની પાસે ક્ષમાપન માગીને ગયા પછી માર્કદીપુત્ર અનગાર ભગવાનની પાસે આવ્યા. આવીને તેઓએ ભગવાનને વંદના કરી

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