Book Title: Bhagwati Sutra Part 12
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 695
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०३ सू०३ छद्मस्थविषये प्रश्नोत्तरम् ६७७ पुत्ता! एवं बुच्चा, छउमत्थे णं. मणसे तेसिं निज्जरापुग्गलाणं नो किंचि अण्णत्तं वा ६ जाणइ पामइ, सुहुमा णं ते पुग्गला पनत्ता समणाउसो ! सबलोग पिय णं ते ओगाहिताणं चिट्ठति। अधमत्व वा तुच्छत्व वा गुरुकत्व वा लघुरुत्वं वा जानाति पश्यति? गौतम । नायमर्थः समर्थः । तत्केनार्थेन भदन्त ! एपशुच्यते-छमस्या, खलु मनुव्यः तेषां निर्जरापुद्गलानां नो किञ्चिद् अन्यत्वं वा ६ जानाति पश्यति ? गौतम ! देवोऽपि च खल्लु अस्त्येककः यः खलु तेषां निर्जरापुद्गलानां नो किश्चिद् अन्यत्वं है और देखता है-सब देव नहीं। 'से तेणटेणं मांगदियपुत्ता, एवं धुच्चह छ उमत्थेणं मणूसे तेसि निज्जरा पोग्गलाणं नो किंचि आणत वा ६ जाणइ पासई' इस कारण हे माकन्दिकपुत्र ! मैंने ऐसा कहा है कि-छद्मस्थ मनुष्य उन निर्जरा पुद्गलों के अन्यत्व आदि को नहीं जानता है। और नहीं देखता है । 'सुहुमा ण ते पुग्गला पन्नत्ता समणाउसो' हे श्रमण ! आयुष्यन् ! वे निर्जरा पुल सूक्ष्म कहे गये हैं। 'सबलोग पि य णं ते ओगाहित्ता णं चिट्ठति' वे सूक्ष्म निर्जरा पुद्गल समस्त लोकाकाश को व्यास कर ठहरे हुए हैं। इत्यादि यह पाठ छद्मस्थ सूत्रगत है। 'देवे वि य णं अत्थेगइए' ऐसा जो कहा गया है सो उसका मतलब ऐसा है कि मनुष्य की अपेक्षा देव प्रायः पटुप्रज्ञावाला होता है अतः अब देवों में भी कोई एकदेव कि जो विशिष्टावधि ज्ञान से विकल है उन निर्जरा पुद्गलों को अन्यत्वादि ६ को नहीं जानता है तो छद्मस्थमनुष्य उन्हें कैसे जान सकता है। कोई एक जानता है ऐसा द्वेणं मागंदियपुत्ता एवं वुच्चइ छउमत्थे णं मणूसे तेसिं निज्जरापोग्गलाणं नो किंचि आणत्तं वा ६ जाणइ पासई तारणे भावीपुत्र मे मे यु. છે કે-છદ્રસ્થ મનુષ્ય તે નિજ૨ા પુલના અન્યત્વે આદિને જાણતા નથી. 'सुहमा णं ते पुगगला पन्नत्ता समणाउसो' श्रम आयु भन् त निस Y८ सूक्ष्म ४ा छे. 'सबलोगपि यण से ओगाहित्ता णो चिटु ति' त सूक्ष्म નિર્જરા પુદગલ બધાજ કાકાશને વ્યાપ્ત કરી રહેલા ઈત્યાદિ આ પાઠ छ१२५ सूत्रनो छे. 'देवे वि यणं अत्थेगइए' मा प्रमाणे अपामा मा०यु' છે તેને ભાવ એ છે કે મનુષ્યથી દેવ પ્રાયઃ પઢપ્રજ્ઞાવાળા હોય છે. જેથી દેવામાં પણ કેઇ એક દેવ કે જે વિશેષ પ્રકારના અવધિજ્ઞાનવાળે હોય છે તેજ જાણે છે. તે વગર બીજા દેવ નિર્જરા પુદ્ગલેના અન્યત્વ વગેરેને જાણતા નથી. તે પછી છદ્મસ્થ મનુષ્ય તેને કેવી રીતે જાણી શકે? કેઈ એક જાણે

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