Book Title: Bhagwati Sutra Part 12
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 675
________________ प्रमेयबंन्द्रिका टीका श०१८ उ०३ सू०१ पृथ्वीकायादीनामन्तक्रियानिरूपणम् ६५७ हिती पुढवीकाइएहितो. अणंवर उव्व दृत्ता माणुस्सं विगह लभइ, लमित्ता केवलं बोहिं बुज्झइ, बुज्यिाचा तो पच्छा सिज्झई' इत्यस्य प्रश्नवाक्यस्य संग्रहो भवति, एवमग्रे सर्वत्र प्रश्नवाक्यावयवस्य अनुकपणं कर्तव्यम् । अकायिकजीवमाश्रित्य पुनः प्रश्नयन्नाह-'से गुण' इत्यादि, 'से गुणं भंते!' तत् नून भदन्त !' 'काउलेस्से आउकाइए' कापोतिकलेश्य:-कापोतिकलेश्यावान्, अकायिको जीवः 'काउलेस्सेहिती उकाइएहितो' कापोतिकलेश्येभ्योऽप्कायिकेन्या , 'अणंतर उव्वहिता' अनन्तरमुत्य-मृत्वा 'माणुस्स विग्ग लभ' मानुष्यंमनुष्यसम्बन्धिनं विग्रह-शरीरं लभते-प्राप्नोति 'लभित्ता' लब्ध्वा 'केवलं बोहिं. बुज्झइ केवलं बोधि बुद्धयते-शुद्धसम्यक्त्वं प्राप्नोतीत्यर्थः 'जाव अंतं करे' है। यहां यावस्पद से 'काउलेस्सेहितो पुढचीकाइएहितो अर्णतर' उव्वट्टित्ता माणुस्सं विग्गहं लभह, लभित्ता केवलयोहिं पुज्झिइ, वुज्झित्ता तओ पच्छा सिज्झ' इस प्रश्नवाक्य का संग्रह हुआ है इसी प्रकार से आगे भी सर्वत्र प्रश्न वाक्य कर लेना चाहिये ।. अब, मार्कदिक पुत्र अनागार प्रभु से ऐसा पूछते है। 'से गूण भते । काउलेस्से आउकाहए काउलेस्से हितो आउकाइएहितो अणंतरं उत्व, ट्टित्ता माणुस्सं विग्गहं लमहलभित्ता' हे भदन्त ! कापोतलेश्यावाला, अप्कायिकजीव कापोतलेश्यावा अप्कायिक जीवों में से तुरत भरकर . मनुष्य शरीर को प्राप्त करके केवलबोधिको-शुद्धसम्यक्त्व को प्राप्ल, करता है, शुद्ध सम्यक्त्व को प्राप्त करके बाद में वह सिद्ध हो जाता है ? यावत् वह सकल दुःखों का नाश कर देता है ? इसके उत्तर में , जय छे. यावत् ससमे ! मत ४२ हे छ. डि. यावत् ५४थी 'काउल्ले. स्सेहि तो पुढवीकाइएहि तो अतरं उव्वद्वित्ता मणुस्सं विग्रहं लभइ, लभित्ता, केवल. बोहिं बुझइ, बुज्झित्ता तओपच्छा सिन्जई' या प्रश्न वायना सब थयो छ, આ પ્રમાણે પ્રશ્ન વાકય સમજી લેવા. , Nथी भावी सना२ प्रभुन गे पूछे थे , 'से गुण, भंते ! काउलेस्से आउकाइए काउलेसेहितो आउकाइएहितो अणतर उव्वद्वित्ता माणुस्स विग्गहं लभ, लभित्ता' 3 भगवान् अपश्यापागे स४ि७१ - તલેશ્યાવાળા અપૂકાયિક જીવપણાથી મરીને મનુષ્ય શરીરને મેળવીને કેવળ - બેધિને–શુદ્ધ સમ્યકત્વને પ્રાપ્ત કરીને તે પછી તે સિદ્ધ થાય છે? યાવત્ ' તે સકળ દુઓનો નાશ કરી દે છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે भR

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