Book Title: Bhagwati Sutra Part 12
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 674
________________ . . ६५६ . भगवती मनुष्यदेहविशिष्टो भवतीत्यर्थः, 'लमित्ता' लब्ध्या, 'केवल वोहिं बुज्झइ' केवलं बोधि वुध्यते, शुद्धसम्यक्त्वं प्राप्नोतीत्यर्थः 'बुज्झित्ता' बुद्ध्वा-शुद्धसम्यक्त्वमवाप्य 'तओ पच्छा सिज्झई ततः पश्चात् सिद्धयति 'जाव अंतं करेई' यावदन्तं करोति, अत्र यावत्पदेन मुच्यते परिनिर्वाति सर्वदुःखानाम् , एतेषां संग्रहो भवति तथा च हे भदन्त ! पृथिवीकायिको जीवः कापोतिकलेश्यावान पृथिवीकार्य परित्यज्य मनुष्यदेह लब्ध्वा केवलज्ञानमवाप्य सिद्धिं याति बुध्यते, मुच्यते, परिनिर्वाति सर्वदुःखानामन्तं करोति किमिति प्रश्नः। भगवानाह-'हंता' इत्यादि, 'हंता मागंदियपुत्ता' हन्त, मागन्दिक पुत्र ! 'काउलेस्से पुढवीकाइए जाव अंतं करेइ' कापोतिकलेश्यः पृथिवीकायिको यावदन्त करोति अत्र यावत्पदेन-'काउलेस्से मनुष्यसंबन्धी शरीर को प्राप्त कर लेता है। 'लभित्ता केवलं योहिं बुज्झई और उसे प्राप्त कर वह उसमें शुद्ध सम्यक्त्व को पा लेता है, तो 'बुज्झित्ता' उस शुद्ध सम्यक्त्व को पाकर 'तओ पच्छा सिज्झइ' इसके बाद वह सिद्ध हो जाता है । 'जाव अंतं करेइ सकल दुःखों को नाश कर देता है ? यहां यावत्पदसे 'मुच्यते परिनिर्वाति सर्वदुःखानाम् इन पदों का ग्रहण हुआ है। तात्पर्य पूछने का ऐसा है कि कापोनिक लेश्यावाला पृथिवीकायिक जीव पृथिवीकायको छोडकर क्यो मनुष्य देह पाकर के और केवलज्ञान प्राप्त करके सिद्धि को पा लेता है? वह 'बुद्ध तत्व का ज्ञाता' हो जाता है ? मुक्त हो जाता है ? परिनिर्वात हो जाता है ? और सकलदुःखों का अन्त कर देता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'हंता मागंदिय पुत्ता' हा मार्कदिक पुत्र ! वह ऐसा हो जाता है । अर्थात् कापोतलेश्यावाला पृथिवीकायिकजीव यावत् अन्त कर देता मनु०५ शरीरन छ ? भरी मनुष्य सवमा नय छ ? मन 'लभित्ता केवलं वोहिं वुझाई' भगवान शरीरथी शुद्ध सभ्य भगवी श? छ? 'बुज्जिचा' शुद्ध सभ्यपने पाभीन 'तो पच्छा सिज्जइ' a पछी सिद्ध थाय छ १ 'जाव अंतं करेई' यावत् सघणा माननाश रे छ.१ महि या१५४थी 'मुच्यते, परिनिर्वाति सर्वदु खानाम् ' म पहानी सड थय। छे. પૂછવાનું તાત્પર્ય એ છે કે—કાપતિક વેશ્યાવાળા પૃથ્વીકાયિક જીવ પૃથ્વીકાયને છેડીને મનુષ્યશરીર પામીને અને કેવળજ્ઞાન મેળવીને શું સિદ્ધિ પ્રાપ્ત કરી શકે છે? તે બુદ્ધ એટલે કે તત્વને જાણનારો બની શકે છે? મુક્ત થઈ શકે છે? પરિનિર્વાત બની શકે છે ? અને સકળ દુઃખને અંત શું शश छे ? मा प्रश्नमा उत्तरमा प्रभु ४ छ :--'हंतो मागंदियपुत्ता, હા માકદિયપુત્ર તે કાપતિક લેસ્યાવાળે પૃથ્વીકાયિક જીવ તે પ્રમાણે બની

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