Book Title: Bhagwati Sutra Part 12
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 661
________________ प्रमेयन्द्रिका टीका श०१८ उ०२ सू०२ कात्तिकश्रेष्टिनः दीक्षादिनिरूपणम् ६४३ आया भंडे' एक:-अद्वितीय आत्मा भाण्डः अत्मरूपो भाण्डः रत्नादिसंभृत भाण्ड इव भाण्ड: 'इडे' इष्टः वाञ्छितार्थपूरकत्वात् 'कते' कान्तः कमनीयः हित पापकत्वात् , 'पिए' पियः सुवोत्पादकत्वात् 'मणुणे' मनोज्ञः शुभगतिदायकस्वात् 'मणामे' मन आमः अक्षयसुखदायकत्वात् अतएव 'एस मे नित्थारिए समाणे' एप मे आत्मा निस्तारितः जन्म जरामरणादिवहिना दह्यमानात् संपार गृहाद निष्कासितः सन् 'संसारवुच्छे यकरे भविस्सइ' संसारव्युच्छेदकर:संसारविनाशकारकः-जन्ममरणनिवारको भविष्यति। 'तं इच्छामि णं भवे ! णेगमट्ठसहस्से णं सद्धिं देवाणुप्पिएहि सय मेव पवाविउ' तत्-तस्मात् कारणा इच्छामि खलु भदन्त । नैगमाष्टसहस्रेण साई देवानुप्रियैः स्वयमेव प्रवाजयिभी-एक रत्नादिक से भरे हुए पिटारे के जैसा है मुझेवान्छितार्थपूरक होने से इष्ट है, हित प्रापक होने से कान्त है सुखोत्पादक होने से, प्रिय है, शुभगतिदायक होने से मनोज्ञ है, तथा कभी जिसका प्राप्ति के बाद विनाश नहीं होता ऐसे अक्षयसुख का देनेवाला होने से मनोऽम है, अत एव यह मेरा आत्मा जरा भरणादि अग्नि से दह्य. मान इस संसार गृह से निष्कासित होकर 'संसारचुच्छेषकरे, संसार विनाश का कर्ता-जन्ममरण का निवारक होगा। 'तं इच्छामिणं भंते !' इसलिये हे भदन्त ! मै आपके द्वारा १००८ वाणिक् जनों के साथ आप स्वयं के द्वारा दीक्षित होऊ एसी कामना कर रहा हूं और यावत् आप स्वयं मुझे धर्म सुनावें ऐसी इच्छा कर रहा हूं यावत्पद से 'सयमेव અલેક-સંસાર સળગે છે. વધારે પ્રમાણમાં સળગેલો છે. ગાથા પતિના બળતા ઘરમાંથી બહાર કાઢેલ અલેપભાર અને બહુમૂલ્યવાળી तु त मविष्यमा ति: २४ थाय छे ते प्रमाणे 'मम वि एगे आया भडे मामात्मा छ. a - २त्नविश्थी सरेसा पास જે છે. મારા ઈછિત અર્થને પૂરનાર હોવાથી મને તે ઈષ્ટ છે. પમાડનાર હોવાથી-કાત છે. સુખ ઉપજાવનાર હોવાથી પ્રિય છે. શુભગતિ દેનાર હોવાથી મનહર છે, જે પ્રાપ્ત થયા પછી કંઈ કાળે નાશ પામતું નથી. તેવા અક્ષયસુખને આપનાર હોવાથી મનોમ છે. એટલા માટે આ મારો આત્મા જન્મ, જરામરણ વિગેરે અગ્નિથી બળતા એવા આ સંસારથી नीजी 'स सारवुन्छेयकरे' सस:२ विनाशना ४२ना२ सन्मभरनु निवा! ४२ना२ थरी 'त' इच्छामि गं भते !' तेथी सगवन् । मे १२ मा વણિકજને સાથે આપની પાસે દીક્ષા ધારણ કરૂં એવી કામના છે. અને આપ મને धर्मापशमा त ४२छ। ४ी २हो . माड यावर५४थी 'मयमेव

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