Book Title: Bhagwati Sutra Part 12
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०२ ०२ कार्त्तिकश्रेष्ठिनः दीक्षादिनिरूपणम् ६४९ भोत्स्यते मोक्ष्यति परिनिर्वास्यति सर्वदुःखानामन्तं करिष्यतीति, 'सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति' तदेवं भदन्त । तदेवं भदन्त । इति यावद्विहरति ॥ म्र० २ ॥ ॥ इति श्री विश्वविख्यात - जगवल्लभ-मसिद्धवाचक- पञ्चदशभाषाकलितळलितकलापाळापकमविशुद्धगद्यपद्यनैकग्रन्थ निर्मापक, वादिमानमर्दक- श्री शाहूच्छत्रपति कोल्हापुरराजपदत्त'जैनाचार्य ' पदभूषित—- कोल्हापुरराजगुरु - बालब्रह्मचारि - जैनाचार्य - जैनधर्मदिवाकर - पूज्यश्री घासीलालवतिविरचितायां
श्री " भगवतीमुत्रस्य" प्रमेयचन्द्रिकाख्यायां व्याख्यायां अष्टादशशतके द्वितीयोदेशकः समाप्तः ॥ १८-२॥
अन्त करेगा | 'सेवं भंते ! २' हे भदन्त ! आप का यह कथन सर्वथासत्य है २ इस प्रकार कहकर गौतम यावत् अपने स्थान पर विराजमान हो गये | सु० २ ॥
जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री घासीलालजीमहाराजकृत "भगवती सूत्र" की प्रमेय चन्द्रिका व्याख्या के अठारहवें शतकका ॥ दूसरा उद्देशक समाप्त ॥ १८-२ ॥
આ કથન સર્વથા સત્ય છે. હું ભગવત્ આપનું સઘળું કથન યથાર્થ છે. આ પ્રમાણે કહીને ગૌતમસ્વામી તપ અન સયમથી આ આત્માને ભાવિત કરતા થકા પેાતાના સ્થાન પર બિરાજમાન થયા ! સૂ૦ ૨૫
જૈનાચાય જૈનધમ દિવાકર પૂજ્યશ્રી ઘાસીલાલજી મહારાજ કૃત “ભગવતીસૂત્ર”ની પ્રમેયચન્દ્રિકા વ્યાખ્યાના અઢારમા શતકના ખીજો ઉદ્દેશક સમાપ્તાા૧૮–૨ા
भ० ८२
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