Book Title: Bhagwati Sutra Part 12
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 640
________________ દરર भगवती सूत्रे 5 लब्धपुण्यपाप इत्यारभ्य अस्थिमज्जा प्रेमानुरागरक्तः यथाप्रतिगृहीतैः तपः कर्मभिरात्मानं भावयन् इति संग्राह्यम् एतादृशः सन् विहरतीति, अस्य व्याख्या द्वितीयशतके पञ्चमोद्देश के तुङ्गिकानगरी भावकवर्णने द्रष्टव्या । 'तेणं काले तेणं सनएणं' तस्मिन् काले तस्मिन् समये 'मुनिसुव्वर अरहा आदिगरे' मुनि सुनोऽर्हन् आदिकर:- मुनिसुव्रत नामकोऽर्हन् आदिकर :- स्वशासनापेक्षया आदिकरो धर्मस्य, 'जहा सोलसमसए तहेव जाव समोसढे' यथा पोडशशते तथैव यावत् समत्रसृतः षोडशशतके पञ्चमोद्देशकस्य प्रकरणमत्र विज्ञेयम् । तत्रापि 'जाव' शब्देनातिदेशः कृतः, तेन इदं प्रकरणं सर्वमत्रत्र प्रथम शतकप्रथमोदेशकरूप पञ्चममुत्रे टीकायां महावीरवर्णने विलोकनीयम् । एतावानेव विशेषो यत्तत्र राजयावत्पद से 'उपलब्धपुण्यपापः, से लेकर 'अस्थिमज्जाप्रेमानुरागरक्तः, यथाप्रतिगृहीतैः तपःकर्मभिः आत्मानं भावयन्' यहाँ तक का पाठ गृहीत हुआ है। इस पाठ की व्याख्या द्वितीयशतक के पश्चम उद्देशक में तुंगिकानगरी के श्रावकों के वर्णन में की गई है सो वहां देख लेना चाहिये । 'तेणं कालेणं तेणं समरणं' उस काल और उस समय में 'मुणि. सुव्वए अरहा आदिगरे' मुनिसुव्रत नामके अर्हन् जो कि अपने शासन की अपेक्षा धर्म के आदिकर्ता थे । 'जहा सोलसमसए तहेव जाव समो सढे' १६ वें शतक के पञ्चम उद्देशक में कहे गये प्रकरण के अनुसार यहां पर आये । १६ वें शतक में भी 'जाव' पदका उल्लेख किया गया है। इसलिये वहाँ पर भी प्रथमशतक के प्रथम उद्देशक में आगत पांचवे सूत्र की टीका में वर्णित महावीर का प्रकरण लिया गया है । अतः वही सब प्रकरण यहां पर ग्रहण किया गया है-ऐसा जानना चाहिये । यदि उस हुन। अडियां पशु यावत् पढ्थी 'उपलब्ध पुण्यपापः' मे वाउचथी मारलीने 'अस्थिमज्जाप्रेमानुरागरतः, यथा प्रतिग्रहितैः तपःकर्मभिः आत्मानं भावयन् ' અહી સુધીના પાઠ ગ્રહણુ થયેલ છે. આ પાઠની વ્યાખ્યા બીજા શતકના પાંચમાં ઉદ્દેશામાં તુંગિકા નગરીના શ્રાવકના વર્ણનમાં કરેલ છે. તે ત્યાંથી लेध खेवी. ‘तेणं कालेणं तेणं समएणं'' ते ठाणे भने ते समये 'मु'णिसुव्वए अरहा आदिगरे' भुनिसुव्रत नामना अन् वा पोताना शासनअणभां धर्मना माहिर्ता हता. 'जहा सोलसमसए तहेव जाव समोसढे' सोजमां शतना પાંચમા ઉદ્દેશામાં કહેલા પ્રકાર પ્રમાણે અહિયાં આવ્યા. સેાળમાં શતકમાં પશુ ‘લાવ' પદના ઉલ્લેખ કરેલ છે. તેથી ત્યાં પણ પહેલા શતકના પહેલા ઉદ્દેશામાં આવેલ પાંચમાં સૂત્રની ટીકામાં વર્ણવેલ મહાવીરસ્વામીના પ્રકરણને •

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