Book Title: Bhagwati Sutra Part 12
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 652
________________ ६३४ भगवतीसने अहंतु संसारं विहाय मन्त्रजिष्यामि यूयं किं कुरुत भवत्सु एतादृशं सामर्थ्य विद्यते किं येन ममानुजनं करिष्यथ अथवा संसारे वसत इति भावः । 'तए णं तं नेगमट्ठ सहस्सं पितं कत्तियं सेटिं एवं वयासी ततः खलु तत् नैगमाष्टसहस्रमपित कात्र्तिकं श्रेष्ठिनम् एवमयादीत् कार्तिकश्रेष्ठिनो धर्मविषयकाग्रहश्रवणानन्तरम् अष्टाधिकसहस्रसंख्याका नैगमा अपि कार्तिकम् एवम्-वक्ष्यमाणप्रकारेण अवोचन्नित्यर्थः । 'जइ णं देवाणुप्पिया!' यदि खलु देवानुप्रियाः 'संसारभयुब्बिग्गा जाव पवइस्संति' संसारभयोद्विग्ना यावर प्रत्रजिष्यन्ति, यावरपदेन भीता जन्म मरणाभ्यां मुनिसुव्रतस्याऽन्तिके, इति संग्रहः । तदा 'अम्हं देवाणुप्पिया!' अस्माकं करोगे। क्या व्यवसाय करोगे? 'किभे हियइच्छिए किं भे सामस्थे' आपकी हृदयाभिलाषा क्या है? क्या आपमें शक्ति है ? अर्थात् मैं संसार को छोड़कर दीक्षा को अङ्गीकार करूंगा-पर आप लोग क्या करोगे ? क्या आप लोगों में ऐसी शक्ति है जो तुम सब मेरा अनुसरण कर सको ? तो कहो क्या तुम सब मेरे साथ रहना चाहते हो? या यहीं संसार में रहना चाहते है। ? 'तए णं तं नेगमहसहस्संपि तं कत्तियं सेट्टि एवं वयासी' इस प्रकार से कार्तिक सेठ का कथन सुनकर १००८ वणिरजनों ने भी उससे ऐसा कहा-'जइणं देवाणुप्पिया! हे देवानुप्रिय ! यदि आप 'संसारभयुधिग्गा' संसारभय से उद्विग्न हो रहे हैं और 'जाव पन्धहस्तंति' यावत् संसार को छोडकर दीक्षित हो रहे हैं-यहा यावत्पद से 'भीता जन्ममरणाम्यांमुनिसुव्रतस्थ अन्तिके' व्यवसाय ४२।। ? "किं भे हियइच्छिए कि मे सामत्ये" मापन यनी શું અભિલાષા છે? આપનામાં શું શક્તિ છે? અર્થાત હું સંસારને છેડીને દીક્ષા ધારણ કરીશ–ને પછી આપ બધા શું કરશે ? આપ સૌમાં એવી તાકાત છે કે તમે સૌ મારૂં અનુકરણ કરી શકે? તે શું તમો સૌ મારી સાથે જ રહેવા ઈચ્છે છે કે અહિં સંસારમાં જ રહેવા ઈ છે छ। ? 'तए ण तं नेगमदुसहस्सं पि तं कत्तियं सेट्टि एवं वयासी" तिनु આ પ્રમાણે કહેવું સાંભળીને તે એક હજાર આઠે વણિકજનેએ તેઓને ४थु -"जइणं देवाणुप्पिया" हेवानुप्रियो ने भा५ संसारभयुविग्गा" ससारना यथी लविश २ छ। स२ "जाव पव्वइस्संति" यावत् संसार छसिनीक्षा ग्रहण ४२।।. भाई या५४थी "भीवा जन्ममरणाभ्यां मुनिसुव्रतस्य

Loading...

Page Navigation
1 ... 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714