Book Title: Bhagwati Sutra Part 12
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 651
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०१ सू०२ कार्तिकश्रेष्ठिनः दीक्षादिनिरूपणम् ६३३. स्याहतोऽन्तिके धर्मो निशान्तः से विय मे धम्मे इच्छिए' सोऽपि च मे धर्म, इष्टः 'पडिच्छिए' प्रतीष्टः 'अभिरूइए' अभिरूचितः 'तए णं अहं देवाणुप्पिया । संसारभउचिग्गे जाव पचयामि' ततः खलु अहं देवानुमियाः ! संसारभयोद्विग्नों यावत् प्रव्रजामि, हे देवानुमियाः ! अहंतु भगवतः सकाशादमिलपितु धर्म श्रुत्वा संसारभयादुद्विग्नो यावद् भीतो जन्ममरणेभ्यः परित्यज्य संसारं मुनिसुव्रतस्ये समीपे प्रत्रज्यां स्वीकरिष्ये इत्यर्थः 'तं तुम्मे णं देवाणुपिया! किं करेह किं वक सह तद् यूयं खलु देवानुपियाः । किं कुरुत किं व्यवस्यत व्यवसायं कुरुत, 'कि, भे हियइच्छिए कि भे सामत्थे' किं युध्माकं हृदयेप्सितम् किं युष्माकं सामर्थ्यम्, धर्मका उपदेश सुना है 'से वि य में धम्मे इच्छिए' पडिच्छिए अभिरु: इए' सेो वह धर्म मुझे इष्ट-हितकारक-प्रतीत हुआ है। प्रतीष्ट-चार पार मेरी रुचि उस धर्म को ग्रहण करने की ओर जा रही है। अभिरुचित-मैं चाह रहा हूं कि मैं इसे बहुत ही जल्दी से स्वीकार करलूं। 'तए णं अहं देवाणुप्पिया! संसारभयुधिग्गे जाव पव्वयामि' धोपदेश सुनकर मैं इस संसार के निवास से भयभीत हो गया हूं। अतः मैं यावत् प्रवजित होना चाह रहा हूं। यहां यावत्पद से यह प्रकट किया गया है। कि हे देवानुप्रियो । मैं तो भगवान् से अभिलषित धर्म का उपदेश सुनकर संसारभय से उद्विग्न यावत् जन्म मरण से भीत हो चुका हूं अतः इस संसार को छोडकर मैं तो मुनिसुव्रत के समीप संयम धारण करूंगा 'तं तुम्भेणं देवाणुप्पिया ! कि करेह, कि ववसह' परन्तु हे देवानुप्रियो। आप सब क्या S५४Ainva छे. “से वि य घम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरूइए" ' ધર્મ મને ઈટ–હિતકારક લાગે છે. પ્રતીષ્ટ વારંવાર મારી રૂચિ તે ધર્મને ગ્રહણ કરવા માટે મને પ્રેરણા કરે છે. અભિરૂચિત-હું ચાહું છું કે ઘણી Neीयी हु. माने स्वीna "तए णं अह देवाणुप्पिया! संसार भयुधिग्गे जाव पव्वयामि" मानी पासथी धमशिना समजान ई-सा સંસારમાં હવે રહેવાથી ભયભીત બન્યો છું. જેથી હું યાવત્ પ્રવજીત થવાને ચાહું છું. અહિયાં યાવત્ પદથી એ બતાવ્યું છે કે હે દેવાનુપ્રિ . હું તે ભગવાન પાસેથી અભિલષિત ધર્મને ઉપદેશ સાંભળીને સંસારના ભયથી ઉદ્વિગ્ન યાવત્ જન્મ-મરણથી ભયભીત થયો છું. જેથી આ સંસાર છોડીને मुनिसुव्रत पासे सयभ धारण शश. "तं तुम्भेणं देवाणुप्पिया! किं करेह कि वह" ५२'तु हेवानुक्रिया! तमे मा शु ४२१ धा। छ। ? श म०८०

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