Book Title: Bhagwati Sutra Part 12
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 644
________________ - भगवतीने -पावयण' इति संग्राह्यम् । श्रद्दधे खलु भदन्त । नैनथ्यं प्रवचनम् प्रत्येमि खलु भदन्त ! नैग्रन्थ्यं प्रवचनम् रोचे खलु भदन्त ! नैन्थ्य प्रवचनम् अभ्युत्तिष्ठामि .खल भदन्त ! नैन्थ्य प्रवचनम् इतिच्छाया, कियत्पर्यन्तमित्याह-जाव से जहेयं तुम्भे वदह' यावत् तद् यथेदं यूयं वदय, अत्र यावस्पदेन 'वहमेयं भंते ! अक्तिहमेयं भंते असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छिपमेयं भंते ! इच्छियपडिच्छिय मेयं भंते !' इति संग्राह्यम् । तथ्यमेतद् भदन्त ! अवितथ्यमेतद् भदन्त ! असंदिग्धमेतद् भदन्त ! इच्छिवमेतद् भदन्त ! प्रतीच्छितमेतद् भदन्त ! इच्छित-प्रतीच्छितमेतद्भदन्त ! इतिच्छाया। 'नवरं देवाणुपिया' नवरं देवानुपिया! नवरं-केवलं विशेषस्त्वयम् हे देवानुपियाः 'नामसहस्सं आपुच्छामि' नैगमाष्ट सहस्रमापृच्छामि, 'जेडपुत्तं च कुटुंबे ठावेमि' ज्येष्ठपुत्रं च कुटुम्वे स्थापयामि 'तए णं अहं देवाणुप्पियाण अंतियं पव्वयामि ततः खलु अहं देवानुपियाणाजैसा आपने कहा है यावत् वैसा ही यह निर्घ प्रवचन है। यहां यावत् 'सदहामि णं भंते !' से लेकर 'अन्भुमिण भते निग्ग पाव. यणं' यह पाठ संगृहीत हुआ है । और यह पाठ 'जाव' से 'जहेयं तुम्भे घदह' यहां तक का लिया गया है। यहां जो यावत्पद आया है। उससे 'तहमेयं भंते ! अवितहमेय भंते ! इच्छियमे भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छियपडिच्छियमेयं भंते ! इन पदों का संग्रह हुआ है। 'णवरं . देवाणुपिया' हे देवानुप्रिय! 'नेगमहलहस्सं आपुच्छामि' में १००८ पणिग्जनों से जाकर पूछता हूं और पूछकर 'जेहपुत्तं च कुडुबे ठावेमि' अपने ज्येष्ठ पुत्रको अपने स्थान पर कुटुम्ब के भरण पोषण करने के लिये स्थापित कर देता हूं।'तए णं अहं देवाणुप्पियाण अंतियं पव्वयामि' याद में वहां से आकर में आप देवानुप्रिय के पास दीक्षित हो निग्गंथं पावयणं" सपन मापे प्रभारी युं छे यावत् नि अपयन ते प्रभारी छे. माहियां यावत् ७४थी 'सदहामि णं भंते" से पायथी मारली "अमुट्ठमि णं भंते ! निगथं पावयण" ५४ अडर थयो छ. -मन ते 8 "जाव"था "जहेयं तुभे वयह" मा सुधा बीघेल छे. मडिया २ यात्५६ पास छ. ताया "तहमेयं भंते ! अवितहमेय भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते !" मा पनि सम थये। छे. 'णवरं देवाणुप्पिया" 3 हेपानु प्रिय ! "नेगमसहस्सं आपुच्छामि" हु मे २ मा परि बनाने पछु छु मन तेयाने पूछीन “जेटुं पुत्तं कुडुवे ठावेमि" २०४ पुरन भारा स्थाने मनु मरणपोषय ४२१। भाट स्था छु "तए ण अहं देवाणुप्पियाणं अंतियं पव्वयामि" ते पछी त्यांची भावीन ई मा५ पान

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