Book Title: Bhagwati Sutra Part 12
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 631
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०२ सु०१ कार्त्तिकश्रेष्ठिनश्चरमत्वनिरूपणम् ६१३ अस्यापि वर्णनं कर्तव्यम् 'सामी समोसढे' स्वामी - महावीरस्वामी समवसृतः 'जाव पज्जुवासर' यावत् पर्युपास्ते अत्र यावत्पदेन परिपन्निर्गता 'भगवतो धर्म कथा जाता, धर्मकयां श्रुत्वा परिषत् प्रतिगता गौतमो भगवन्तं पर्युपास्ते । 'तेणं काणं तेणं समएणं' तस्मिन् काले तस्मिन् समये 'सक्के देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे' शक्रो देवेन्द्रो देवराजो वज्रपाणिः पुरन्दरः, 'एवं जहा सोलसमसए वितिय उद्देसए' एवं यथा षोडशशते द्वितीयोदेशके 'तहेब' तथैव षोडशशतकीयद्वितीयोदेशक वर्णितवक्तव्यतावदेव 'दिव्वेणं जाणविमाणेणं आगओ ' दिव्येन यानविमानेन आगतः, सर्वद्वर्या युक्तः, षोडशशतकीय द्वितीयोद्देशे यथा शक्रस्य स्वरूपं निरूपितं यद्वा आगमनकारणं निरूपितम् आगमनप्रकारच प्रदचाहिये | 'सामी समोस ढे' महावीर स्वामी यहां पधारे 'जाव पज्जुवासह ' यावत् पर्युपासना की - यहां यावत् शब्द से 'परिषत् निकली भगवान् धर्मकथा कही, धर्मकथा को सुनकर बह परिषद् गई, गौतम प्रभु की पर्युपासना कर रहे थे 'तेणं कालेणं तेणं समएणं' उसी काल और उसी समय में 'सक्के देविंदे देवराया वज्रपाणी पुरंदरे' देवेन्द्र, देवराज, वज्रपाणि, पुरंदर ऐसे शक्र 'एवं जहा सोलसमसए वितिय उद्देसए' जैसा कि १६ वे शतक के द्वितीय उद्देशक में कहा गया है, उसी वक्तव्यता के अनुसार 'दिव्वेणं जाणविमाणेणं' दिव्ययान विमान पर बैठकर 'आगओ' सर्वद्धि से युक्त हुए आये, यहाँ सोलहवें शतक के द्वितीय उद्देशक में जैसी शक्र स्वरूप की वक्तव्यता कही गई है, अथवा - उसके आगमन का कारण कहा गया है, और आगमन का प्रकार प्रकट किया गया है rg 'सामी समोसढे' महावीर स्वामी ते उद्यानमां पधार्या 'जाव पज्जुवासह' परिषद तेमने वहन ४२वा भावी अलुमे तेखाने धर्मः દેશના સભળાવી ધમ દેશના સાંભળીને પ્રભુને વંદના નમસ્કાર કરીને પરિ છઠ્ઠુ પાતપેતા સ્થળે પાછી ગઈ તે પછી ગૌતમસ્વામી પ્રભુની પયુ પાસના उरता हता ते सभये 'वेणं कालेणं देणं समएणं ते अस याने ते सभये 'सक्के देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरदरे' देवेन्द्र हेवना ईन्द्र देवरान व पाथी थुरहर मेरे। शङ्ख “एवं जहा सोलसमसए बित्तिय उद्देसए' सोभां शतना मील उद्देशामां ने अभाबे म्छु' छे, ते उथन प्रभा 'दिव्वेणं जाणविमाणेणं' हिव्य यान विभानपर मेत्रीने 'आगओ' सर्व अहारनी ऋद्धिवाणी थह ने આવ્યે. સેાળમાં શતકના ખીજા ઉદ્દેશામાં જે પ્રમાણે શકના સ્વરૂપનું વન કર્યુ છે. અથવા શકના આગમનનું કારણ પ્રગઢ કર્યુ છે,

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