Book Title: Bhagwati Sutra Part 12
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 622
________________ ૩ भगवती सूत्रे ज्ञानस्यावश्यंभावेन अचरमः, सिद्धस्तु अक्षीणज्ञानभाव एव भवतीत्यतोऽचरमः शेषास्तु येषां ज्ञानसहितनारकत्वादीनां पुनः प्राप्तेरसंभवा ते चरमाः एतद्विना अवरमाः, 'सम्वत्थ' इति, सर्वत्र सर्वेषु जीवादिसिद्धपर्यन्तपदेषु एकेन्द्रिय'वर्जितेषु सम्यग्दृष्टिवद्विज्ञेयम् इति । ज्ञानभेदानाश्रित्याह- 'आभिनिवोहियनाणी जात्र मणपज्जवनाणी जहा आहारओ' आभिनिवोधिकज्ञानी यावन्मनः पर्यव - ज्ञानी यथा आहारकः, अत्र यावत्सदेन अवधिश्रुतज्ञानयोः सङ्ग्रहः, आभिनिवोधिकादि ज्ञानवान् आहारकवदेन ज्ञातव्यः स्याच्चरमः स्यादचरमः, तत्र आभिनिवोधिकादिज्ञानकेवलज्ञानमाप्त्या यः पुनरपि न प्राप्स्यति स चरम, एतन्निोऽचरमः | 'नवरं जस्स जं अस्थि' नवरं यस्य यदस्ति, यस्य - जीवनार भी पुनः उस ज्ञान की अवश्य प्राप्ति हो जाती है । इससे वह इस द्वार में अचरम हैं । तथा सिद्ध तो अक्षीण ज्ञान भाववाछे ही होते हैंइससे वे अचरम हैं । तथा जिन ज्ञान सहित नारकत्वादिकों को पुनः ज्ञान सहितनारकत्वादिक की प्राप्ति नहीं है वे चरम हैं और इससे जो भिन्न है - वे अचरम हैं। 'सव्वत्थ' जीव से लेकर सिद्ध पर्यन्त पदों में एकेन्द्रिय को छोडकर सम्यग्दृष्टि के जैसा जानना चाहिये । 'आभि निवोहियनाणी जाव मणपज्जवणाणी जहा आहारओ' आभिनियोषिक ज्ञानी यावत् मन:पर्ययज्ञानी आहारक के जैसे हैं यहां यावत् पदसे श्रुतज्ञान और अवधिज्ञानका ग्रहण किया गया है जो आमिनियोधिकज्ञानी यावत् मनःपर्यवज्ञानी आभिनिबोधक आदि ज्ञान को केवलज्ञान की प्राप्ति हो जाने से पुनः प्राप्त नहीं करेगा वह चरम है और इससे भिन्न वह अचरम है । 'नवरं जस्स जं अस्थि' जिस થવા છતાં પણ ફરીથી તેને તે જ્ઞાનની અવશ્ય પ્રાપ્તિ થાય છે. તેથી આ દ્વારમાં તે અચરમ છે. અને સિદ્ધ તે અક્ષીણુ જ્ઞાનવાળા જ હાય છે. તેથી તેઓ અચરમ છે. જે જ્ઞાનવાળા નાકાદિકાને ફરીથી જ્ઞાન સહિત નારકાદિકની પ્રાપ્તિ થતી નથી તેએ ચરમ છે. અને તેનાથી ભિન્ન હોય તે અચરમ छे 'सव्वत्थ' थी और लीने सिद्ध पर्यन्तना यहासां येन्द्रियाने छोडीने सभ्यग्दृष्टिवाणा प्रमाणे सभवा. 'आभिणिवोहियनाणी जाव मणपज्जवणाणी जहा आहारओ' मामिनिमोधिज्ञानी यावत् भनः पर्यवज्ञानी मालिनियोधि વગેરે જ્ઞાનીને કેવળજ્ઞાનની પ્રાપ્તિ થઈ જવાથી તેને ફરીથી પ્રાપ્ત કરશે नहीं तेथी ते यरभ छे भने तेनाथी लिन्न अथरभ थे. 'नवर' जस्स जं

Loading...

Page Navigation
1 ... 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714