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प्रस्तावना
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शास्त्र, अरिष्ट एवं शकुन आदि का वर्णन रहता है। जीवनोपयोगी प्राय: सभी व्यावहारिक विषय संहिता के अन्तर्गत आ जाते हैं।
व्यापक रूप से संहिताशास्त्र के बीजसूत्र अथर्ववेद के अतिरिक्त आश्वलायन गृह्यसूत्र, पारस्कर गृह्यसूत्र, हिरण्यकेशीसूत्र, आपस्तम्ब गृह्यसूत्र, सांख्यायन गृह्यसूत्र, पाणिनीय व्याकरण, मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, महाभारत, कौटिल्य अर्थशास्त्र, स्वप्नवासवदत्त नाटक एवं हर्षचरित प्रभृति ग्रन्थों में विद्यमान हैं। आश्वलायन गृह्यसूत्र में—"श्रावण्यां पौर्णमास्यां श्रावणकर्माणि" "सीमन्तोन्नयनं यदा पुष्यनक्षत्रेण चन्द्रमा यक्त: स्यात् ।' इन वाक्यों में मुहूर्त के साथ विभिन्न संस्कारों की समय-शुद्धि एवं विविध विधानों का विवेचन किया गया है । इस ग्रन्थ में 3,7-8 में जंगली कबूतरों का घर में घोंसला बनाना अशुभ कहा गया है । यह शकुन प्रक्रिया संहिता ग्रन्थों का प्राण है। पारस्कर गृह्यसूत्र में-"त्रिषु त्रिषु उत्तरादिषु स्वाती मृगशिरसि रोहिण्यां'- इत्यादि सूत्र में उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, उत्तराभाद्रपद, रेवती और अश्विनी नक्षत्र को विवाह नक्षत्र कहा है। इतना ही नहीं इस सूत्रग्रन्थ में आकाश का वर्ण एवं कई ताराओं की विभिन्न आकृतियाँ और उनके फल भी लिखे गये हैं । यह प्रकार संहिता विषय से अति सम्बद्ध है। 'सांख्यायन गृह्यसूत्र' (5-10) के अनुसार, मधुमक्खी का घर में छत्ता लगाना तथा कौओं का आधी रात में बोलना अशुभ कहा है । बौधायन सूत्र में-"मीन मेषयोषवृषभयोर्वसन्तः" इस प्रकार का उल्लेख मिलता है। सूर्य संक्रान्ति के आधार पर ऋतुओं की कल्पनाएं हो चुकी थीं तथा कृषि पर इन ऋतुओं का कैसा प्रभाव पड़ता है, इसका भी विचार आरम्भ हो गया था।
निरुक्त में दिन, रात, शुक्लपक्ष, कृष्णपक्ष, उत्तरायण, दक्षिणायन आदि की व्युत्पत्ति मात्र शाब्दिक ही नहीं है, बल्कि परिभाषात्मक है। ये परिभाषाएँ ही आगे संहिता-ग्रन्थों में स्पष्ट हुई हैं । पाणिनि ने अपनी अष्टाध्यायी में संवत्सर, हायन, चैत्रादिमास, दिवस, विभागात्मक मुहूर्त शब्द, पुष्य, श्रवण, विशाखा आदि की व्युत्पत्तियां दी हैं । 'वाताय कपिला विद्युत्' उदाहरण द्वारा निमित्तशास्त्र के प्रधान विषय 'विद्य त् निमित्त' पर प्रकाश डाला है तथा कपिला विद्युत् को वायु चलने का सूचक कहा है । पाणिन ने 'विभाषा ग्रहः' (3,1,143) में ग्रह शब्द का भी उल्लेख किया है । उत्तरकालीन पाणिनि-तन्त्र के विवेचकों ने उक्त सूत्र के ग्रह शब्द को नवग्रह का द्योतक अनुमान किया है। अष्टाध्यायी में पतिघ्नी रेखा का भी जिक्र आया है, अतः इस ग्रन्थ में संहिता-शास्त्र के अनेक बीजसूत्र विद्यमान हैं। __ मनुस्मृति में सिद्धान्तग्रन्थों के समान युग और कल्पमान का वर्णन मिलता है। तीसरे अध्याय के आठवें श्लोक में आया है कि कपिल भूरे वर्णवाली, अधिक