Book Title: Bhadrabahu Samhita
Author(s): Nemichandra Jyotishacharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 12
________________ 10 भद्रबाहुसंहिता उन्हें करण ग्रन्थ कहते हैं। संहिता ग्रन्थों में भूशोधन, दिक्शोधन, शल्योद्धार, मेलापक, आयाद्यानयन, गृहोपकरण, इष्टिकाद्वार, गेहारम्भ, गृहप्रवेश, जलाशय निर्माण, मांगलिक कार्यों के मुहूर्त, उल्कापात, वृष्टि, ग्रहों के उदयास्त का फल, ग्रह चार का फल, शकुनविचार, कृषि सम्बन्धी विभिन्न समस्याएं, निमित्त एवं ग्रहण फल आदि बातों का विचार किया जाता है। होरा का दूसरा नाम जातक भी है। इसकी उत्पत्ति अहोरात्र शब्द से है। आदि शब्द 'अ' और अन्तिम शब्द 'त्र' का लोप कर देने से होरा शब्द बनता है। जन्मकालीन ग्रहों की स्थिति के अनुसार व्यक्ति के लिए फलाफल का निरूपण किया जाता है। इसमें जातक की उत्पत्ति के समय के नक्षत्र, तिथि, योग, करण आदि का फल विस्तार के साथ बताया गया है । ग्रह एवं राशियों के वर्ण, स्वभाव, गुण, आकार, प्रकार आदि बातों का प्रतिपादन बड़ी सफलतापूर्वक किया गया है। जन्मकुण्डली का फलादेश कहना तो इस शास्त्र का मुख्य उद्देश्य है तथा इस शास्त्र में यह भी बताया गया है कि आकाशस्थ राशि और ग्रहों के बिम्बों में स्वाभाविक शुभ और अशुभपना विद्यमान है, किन्तु उनमें परस्पर साहचर्यादि तात्कालिक सम्बन्ध से फल विशेष शुभाशुभ रूप में परिणत हो जाता है, जिसका प्रभाव पृथ्वी स्थित प्राणियों पर भी पूर्ण रूप से पड़ता है। इस शास्त्र में देह, द्रव्य, पराक्रम, सुख, सुत, शत्रु, कलत्र, मृत्यु, भाग्य, राज्यपद, लाभ और व्यय इन बारह भावों का वर्णन रहता है । जन्म-नक्षत्र और जन्म-लग्न पर से फलादेश का वर्णन होरा शास्त्र में पाया जाता है। संहिता-ग्रन्थों का विकास ___ संहिता-ग्रन्थों का विकास जीवन के व्यावहारिक क्षेत्र में ज्योतिष विषयक तत्त्वों को स्थान प्रदान करने के लिए ही हुआ है । कृषि की उन्नति एवं प्रगति ही संहिता-ग्रन्थों का प्रधान प्रतिपाद्य विषय है । वेदों में भी फलित ज्योतिष के अनेक सिद्धान्त आये हैं । कृषि के सम्बन्ध में नाना प्रकार की जानकारी और विभिन्न प्रकार के निमितों का वर्णन अथर्ववेद में आया है। जय-पराजय विषयक निमित्त तथा विभिन्न प्रकार के शकुन भी इस ग्रन्थ में वर्णित हैं । ऋग्वेद के ऋतु, अयन, वर्ष, दिन, संवत्सर आदि भी संहिताओं के मूलभूत सिद्धान्तों में परिगणित हैं। संस्कृत साहित्य के उत्पत्तिकालीन साहित्य में भी संहिताओं के तत्त्व उपलब्ध होते हैं । यद्यपि यह सत्य है कि वराहमिहिर के पूर्ववर्ती संहिता-ग्रन्थों का अभाव है, पर इनके द्वारा उल्लिखित मय, शक्ति, जीवशर्मा, मणित्थ, विष्णुगुप्त, देवस्वामी, सिद्धसेन और सत्याचार्य जैसे अनेक ज्योतिर्विदों के ग्रन्थ वर्तमान थे, यह सहज में जाना जा सकता है । संहिता-ग्रन्थों में निमित्त, वास्तुशास्त्र, मुहूर्त

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