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किरण १]
बाबू देवकुमार जो की जीवनी
एक जिनालय नगर में, सोह्रै प्रतिविख्यात । यश कीरत की आपको, कहिये क्या २ बात ।। एकाहारी ये रहे, चालिस वर्ष प्रमाण । घायू चौंसठ वर्ष में, पूरन भई सुजान ॥
श्रीयुत प्रभुदयाल के, सुत श्री चन्द्रकुमार इतिसकी आयु भये, छोड़ि गये संसार | ज्येष्ठ तनय इनके भये, श्रीयुत देवकुमार । यथानाम गुण भी तथा जानत है संसार ॥
होनहार तेहि अनुज ये, बाबू धर्मकुमार । जाकी विद्या बुद्धि थी, अतिशय परम अपार ॥ बी. ए. तक पाठी भये, धर्म ध्यान लवलोन । पढ़े संस्कृत शास्त्र बहु, होनहार परवीन ॥
अविवेकी यह काल है, कहयो नहीं कलुजात । कच्ची कली को तोड़ते, तनिक नहीं सकुचात ॥ बाल वृद्ध बनिता वधु, सबको ये भखि जाय । पर इस पापी क्रूर को, नहि कोऊ भी खाय ॥ दुष्टने, दीने हृदय मरोर ।
हाय ! हाय ! इस इन्हें भी भखि गयो, कीनो यतन करोर। श्रीयुत देवकुमारकी, कही कहानी रोय । जैसी हो होतव्यता, तैसी बातें होय ॥
सम्बत शत उनीस अरु, तैंतिस चेत्रहि मास । शुक्ल अष्टमी के दिना, जगमें भयो प्रकाश ॥ बाल समय ही आपने देखा पिता बियोग । तथा अनुज ये ही भये, क्या २ कहिये सोग ॥
धर्मवीर ने धैर्ययुत, सहन किये सब शोक | रोते थे सब लोगही, इनकी दशा बिलोक ॥ अंग्रेजी में आपने, एफ. ए. कीन्हों पास | धर्म पथ ये रत रहे, जगते
सदा उदास ॥