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बाबू देवकुमार जी की जीवनी
[ले०-स्व० श्री जैनेन्द्र किशोर जैन ]
[स्व० बाबू जैनेन्द्र किशोर जी अपने समय के युगद्रष्टा निबन्धकार; सुकुमाल, मनोरमा, कमलिनी आदि उपन्यासों के प्रणेता; श्रीपाल, कल कौतुक, अंजना और चन्द्रहास आदि नाटकों के सर्जक; अभिनय कला के मर्मज्ञ; अनेक पत्रों के संपादक; आरा-नागरी-प्रचारिणी सभा के संस्थापक; स्याद्वाद-विद्यालय-काशी के मन्त्री एवं युगप्रवर्तक श्री बाबू देवकुमार जी के स्नेही मित्र थे। आपकी हस्त लिपि में यह 'जीवन काव्य' १६०८ से 'भवन' के संग्रहालय में सुरक्षित है। ]
जैन सुजनके मानको, कारण देवकुमार । अग्रवाल दीपक यही, धर्मी परम उदार ।। यथा नाम गुण भी तथा, पाये देवकुमार । धर्मधीर गुण शीलयुत, जैनिनके हितकार ॥
देव देव जाने कियो, पूरी मनकी श्रास । जिमि दिनेशके उदय ते, जगमें होत विकास ॥ धर्मधुरन्धर ज्ञानयुत, जैनिनके सिरताज ।
तिनकी छोटी जीवनी, भेंट करों मैं आज ॥ श्रीयुत प्रभुदयाल जी, जैन जगत विख्यात । पण्डित श्रारा नगर में, दूजो नहीं लखात ।। पण्डित दौलतरामके, समय भये मतिमान । फैलो जैनसमाजमें, जिनको चहुदिकि ज्ञान ।।
सोहै काशी नगर में, असी भदनो घाट । श्रीसुपार्श्व जिनदेवको, मन्दिर रम्य विराट ।। संवत शत उनीस अरु, तेरह माहि प्रमान ।
देवालय को आपने, कीनोहै निर्मान । करी प्रतिष्ठा धूमते, सम्पति बहुत लगाय । जुरे भविक चहुँ देश ते, प्रमुदित हिय हुलसाय ।। चन्द्रपुरीमें चन्द्रजिन, जनमे तीर्थ महान । एक जिनालय यहाँ भी, सोहत परम प्रधान ।।