Book Title: Aupapatikopanga Sutram
Author(s): Jinendrasuri, 
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 65
________________ औपपा अनगा० तिकम् ॥५३॥ XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXRAR मध्यं यस्यां सा तथा, यस्यां हि कृष्णप्रतिपदि पञ्चदश कवलान भुक्त्वा ततः प्रतिदिनमेकहान्या अमावस्यायामेकं शुक्लप्रतिपद्यप्येकमेव, ततः पुनरेकैकवृद्धथा पौर्णमास्यां पञ्चदश भुङ्क्ते सा तनुमध्यत्वावमध्येति ॥ . ____ वाचनान्तराधीतमथ पदचतुष्कम्-'विवेगपडिमति विवेचनं विवेकः-त्यागः, स चान्तराणां कषायादीनां बाह्यानां च गणशरीरानुचितभक्तपानादीनां तत्प्रतिपत्तिविवेकप्रतिमेति । 'विउस्सग्गपडिम'ति व्युत्सर्गप्रतिमा-कायोत्सर्गकरणमिति । 'उवहाणपडिमं'ति तपोविषयोऽभिग्रहः, यद्यपि दशाश्रुतस्कन्धे भिक्षपासकप्रतिमास्वरूपेयमुक्ता तथापीह तथा न व्याख्याता, भिक्षुप्रतिमानां प्रागेव दर्शितत्वाद् , उपासकप्रतिमानां च साधूनामसम्भवात् । पडिसलीणपडिम'ति संलीनताऽभिग्रहमिति ॥ १५॥ तेणं काले णं ते णं समए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे थेरा भगवंतो जातिसंपण्णा कुलसंपण्णा पलसंपण्णा रूवसंपण्णा विणयसंपण्णा णाणसंपण्णा देसणसंपण्णा चरित्तसंपण्णा लज्जासंपण्णा लाघवसंपण्णा (१०) ओअंसी तेअंसी वच्चंसी जसंसी (१४) जिअकोहा जिअमाणा जिअमाया जिअलोभा जिअइंदिआ जिअणिहा जिअपरीसहा (२१) जीविआस-मरणभय-विप्पमुक्का (२२) वयपहाणा गुणप्पहाणा करणप्पहाणा धरणप्पहाणा णिग्गहप्पहाणा निच्छयप्पहाणा अजवप्पहाणा महवप्पहाणा लाघवप्पहाणा खंतिप्पहाणा मुत्तिप्पहाणा विज्जापहाणा मंतप्पहाणा वेअप्पहाणा बंभप्पहाणा नयप्पहाणा नियमप्पहाणा सच्चप्पहाणा सोअप्पहाणा (४१) चारुवण्णा लज्जातवस्सीजिइंदिआ सोही अणियाणा (४५) अप्पुस्सुआ अपहिल्लेसा अप्पडिलेस्सा सुसामण्णरया दंता (बहूणं आयरिया बहूणं उपज्झाया बहूणं गिहत्थाणं पव्वइयाणं च दीवो ताणं शरणं गई पाहा) (५०), इणमेव जिग्गथं पावयणं पुरो का विहरति । साधुवर्णकगमान्तरमेव, तत्र 'जाइसंपन्न'त्ति उत्तममातृकपक्षयुक्ता इत्यवसेयम् , अन्यथा मातृकपक्षसम्पन्नत्वं पुरुषमात्रस्यापि स्यादिति नैषामुत्कर्षः कश्चिदुक्तः स्याद् , उत्कर्षाभिधानार्थं चैषां विशेषणकदम्बकं चिकीर्षितमिति, एवं 'कुलसंपन्ना' इत्याद्यपि विशेषणनवकं, नवरं कुलं-पैतृका RXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX ॥ ५३

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