Book Title: Aupapatikopanga Sutram
Author(s): Jinendrasuri,
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________
अम्मडा०
कम्
तिमय करणतो य सेहाविहिति, सिक्खाविहिति तंजहा-लेहं गणितं रूवं गर्दै गीयं वाइयं सरगयं पुक्खरगयं (दुक्खवन्नायं) समतालं जूयं जणवायं
पासकं अट्ठावयं पोरेकच्चं दगमट्टियं अण्णविहिं पाणविहिं वत्थविहिं विलेवणविहिं सयणविहिं अज्जं पहेलियं मागहियं गाहं गीइयं सिलोयं हिरण्णजुत्ती सुवण्णजुत्ती गंधजुत्ती चुण्णजुत्ती आभरणविहिं तरुणीपडिकम्म इत्थिलक्खणं पुरिसलक्खणं हयलक्खणं गयलक्खणं गाणलक्षणं कुक्कुडलक्खणं
चक्कलक्खणं छत्त लक्खणं चम्मलक्खणं दंडलक्खणं असिलक्खणं मणिलक्खणं काकणिलक्खणं वत्थुविज्जं खधारमाणं नगरमाणं वत्थुनिवेसणं वह ॥१५६॥ पडिबूहं चारं पडिचारं च चवई गहलवूहं सगडवूह जुद्धं निजुद्धं जुद्धातिजुद्धं मुट्टिजुई बाहुजुद्धं लयाजुद्धं इसत्यं छरुप्पवाहं धगुव्येयं हिरण्णपागं
सुवण्णपागं वट्ट (पन्भ) खेडं खुत्तावेज्झखेड्डं णालियाखेड्डं पत्तच्छेज्जं कडवच्छेज्जं सजीवं निज्जीव सउणरुतमिति बाबत्तरिकलाओ सेहाविति सिक्तावेत्ता अम्पापिईणं उवहिति १० । तए णं तस्स दडपइण्णस्स दारगस्स अम्मापियरो तं कलायरियं विपुलेणं असणपाणखाइमसाइमेणं वत्थगंघमल्लालंकारेण य सक्कारेहिति सम्माहिति सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता विपुलं जीवियारिहं पीइदाणं दलइस्सइ, विपुलं २ ता पडिविसज्जेहित्ति ११ । तए णं से दढपइण्णे दारए बावत्तरिकलापंडिए(विनयपरिणयमेत्ते) नवंगसुत्तपडिबोहिए अट्ठारस-देसीभासाविसारए गीयरतो गंधव्वणट्टकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी वियालचारी साहसिए अलं भोगसमत्थे आवि भविस्सइ १२ । तए दढपइण्णं दारगंअम्मापियरो बावत्तरिकलापंडियं जाव अलं भोगसमत्थं वियाणित्ता विउलेहि अण्णभोगेहि पाणभोगेहि लेणभोगेहि वत्थभोगेहि सयणभोगेहि कामभोगेहि उवणिमंतेहिति, तए णं से दढपइणे दारए तेहि विउलेहि अण्णभोगेहि जाव सयणभोगेहि णो सजिहिति णो रज्जिहिति णो गिज्झिहिति णो अज्झोववज्जिहिति, से जहाणामए उप्पले इ वा पउमे इवा कुसुमे इ वा नलिणे इ बा सुभगे इ वा सुगंधे इ वा पोंडरोए इ वा
महापोंडरीए सतपत्ते इ वा सहस्सपत्ते इ वा सतसहस्सपत्ते इ वा पंके जाए जले संवढे णावलिप्पइ पंकरएणं णोबलिप्पइ जलरएणं एवमेव दढपइण्णेवि KI दारए कामेहि जाए भोगेहिं संवुड्डे णोवलिप्पिहिति कामरएणं णोवलिप्पिहिति भोगरएणं णोवलिप्पिहिति मित्तणाइ-णियग-सयण-संबंधि
परिजणेणं, से णं तहारूवाणं थेराणं अंतिए केवलं बोहिं बुज्झिहिति केवलबोहि बुज्झित्ता अगाराओ अणगारियं पब्वइहिति १३ । से गं
।
॥१५६।।

Page Navigation
1 ... 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200