Book Title: Atthpahud Author(s): Kundkundacharya, Jaykumar Jalaj, Manish Modi Publisher: Hindi Granthratna Karyalay View full book textPage 7
________________ अन्तिम माने जाते हैं। जैन परम्परा में वे कुन्दकुन्द और उमास्वामी ही हैं जो आखिरी अदालत हैं। उमास्वामी (तत्त्वार्थसूत्र के रचयिता) कुन्दकुन्द्र के शिष्य थे। पहले दायित्व के निर्वाह ने जहाँ कुन्दकुन्द को कवि और दार्शनिक के रूप में प्रतिष्ठापित किया वहीं दूसरे के निर्वाह ने उन्हें एक सफल और कठोर प्रशासककेरूप में प्रतिष्ठा दी। पहलेका चरमप्रतिफलन समयसार के सृजन में और दूसरे का अट्ठपाहुड (जिसे प्रायः अष्टपाहुड कहा जाता है) की रचना के रूप में हुआ। आचार्यकुन्दकुन्दभगवान् महावीर और पूर्ववर्ती तेईस तीर्थंकरों के सिद्धान्तों का जिस गहन भावात्मक जुड़ाव के साथ प्रतिपादन करते हैं उनकी कविता और मौलिकता उसी में है। उक्त सिद्धान्तों से विचलनका, उनसे हटने का तो सवाल ही नहीं है। कुन्दकुन्द उन्हें अपनी आत्मा की जिसअतल गहराईसेअभिव्यक्तकरते हैं वहपाठकमेंदूर तकलहरें उठाती है। प्रत्येकयुगान्तरकारी व्यक्तित्व मौलिकताकेअपने इसी स्वरूप मेंरमण करता है। महावीर के सिद्धान्तों के प्रति कुन्दकुन्द का मन, वचन, कायसे चरमसमर्पणभाव और आस्था उनकी कविता को एक ईमानदार मौलिक चमक और अनूठा व्यक्तित्व प्रदान करती है। प्रशासन और कवितादोनों अलग-अलगस्वभावकी विधाएँ हैं। दोनोंकाएकसाथ निर्वाह तलवार कीधार पर चलना है।कुन्दकुन्दतलवार की इसधार पर बेहदसहजतासेचलते हुए मिलते हैं। वे जानते हैं कि इसके लिएशास्त्र की नहीं लोककीभाषाहीसच्चीसहायिका होती है। इसलिए उन्होंने उसीका सहारा लिया। उन्होंने अपनीसृजनशीलता के लिए जिसभाषामाध्यमकोचुनावह जन-जन की भाषा शौरसेनी प्राकृत थी। पाण्डित्य का बोझ न तो उनके कथ्य में है और न उनकी भाषा में। दरअसल उन्हें महावीर के रास्ते की अचूक पहचान और पकड़ है। प्राकृत का पाहुडशब्द संस्कृत के प्राभृतशब्द से, जिसका अर्थ उपहार है, रूपान्तरित हुआ है। कह सकते हैं कि यह साधक आत्मा की ओर से परम आत्मा को दिया गया उपहार है। आभृत काअर्थप्रस्थापित करना, धारण करनाभी है। प्रकृष्ट आचार्यों द्वाराधारित/व्याख्यायित ज्ञानको प्राभृतकहागया होगा।प्राभृतकाअर्थअधिकार यानीअध्याय भी मिलता है। इस अर्थ मेंप्राभृत/ पाहुड विषय विशेष पर रचित अध्याय है। वह विषय विशेष की प्रतिपादक रचना है। आचार्य कुन्दकुन्द को पाहुडरचना में विशेष महारत हासिल है। कहते हैं, उन्होंने ८४ पाहुडों की रचना की थी। पाहुड प्राकृत भाषा की मुक्तक काव्य विधा है। कुन्दकुन्द के कारण इसे इतनी लोकप्रियता मिली कि आगे चलकर अपभ्रंश के कवि मुनि रामसिंह ने भी इसे अपनी कृति पाहुड दोहा में अपनाया।अट्ठपाहुडमें कुन्दकुन्द ने दर्शन, सूत्र, चारित्र, बोध, भाव, मोक्ष, लिंग और शील इन आठ विषयों को गाथा छन्द में निबद्ध किया है। अलग-अलगशीर्षकों के बावजूद आठों पाहुड एकसमानसूत्रसेपरस्पर जुड़ेहुए हैं। येसबएकहीमार्ग-मोक्षमार्गकासम्मिलित रूप में प्रतिपादन करते हैं और दरअसल वे उसी एककेआठघटक हैं। जयकुमार जलज 30 इन्दिरा नगर, रतलाम, मध्य प्रदेश 457001 दूरभाष : (07412) 260 911,404 208, (0) 98936 35222 ई-मेल : jaykumarjalaj@yahoo.comPage Navigation
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