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अष्ट पाहुड़storate
स्वामी विरचितYON
आचार्य कुन्दकुन्द
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आदि अनेक धर्मों की अपेक्षा भेद वर्णन है। इसके पद ‘एक करोड़' हैं। २. दूसरा 'अग्रायणी' नामक पूर्व है जिसमें सात सौ सुनय और दुर्नय का तथा छह द्रव्य, सात तत्त्व और नौ पदार्थों का वर्णन है। इसके पद 'छियानवे लाख' हैं। ३. तीसरा 'वीर्यानुवाद' नामक पूर्व है जिसमें द्रव्यों की शक्ति रूप वीर्य का वर्णन है। इसके पद 'सत्तर लाख' हैं। ४. चौथा 'अस्तिनास्तिप्रवाद' नामक पूर्व है जिसमें जीवादि वस्तुओं का स्व-पर द्रव्य, क्षेत्र, काल तथा भाव की अपेक्षा लेकर, अस्ति और नास्ति आदि अनेक धर्मों में, विधि-निषेध से, सात भंगों के द्वारा, कथंचित् विरोध मेटने रूप मुख्यता और गौणता से वर्णन है। इसके पद 'साठ लाख' हैं। ५. पांचवां 'ज्ञानप्रवाद' नामक पूर्व है जिसमें ज्ञान के भेदों के स्वरूप, संख्या, विषय और फल आदि का वर्णन है। इसके पद 'एक कम एक करोड़' हैं। ६. छठा 'सत्यप्रवाद' नामक पूर्व है जिसमें सत्य और असत्य आदि वचनों की जो अनेक प्रकार की प्रव त्ति है उसका वर्णन है। इसके पद 'एक करोड़, छह' हैं। ७. सातवां 'आत्मप्रवाद' नामक पूर्व है जिसमें आत्मा जो जीव पदार्थ उसके कर्ता और भोक्ता आदि अनेक धर्मों का निश्चय–व्यवहार नय की अपेक्षा से वर्णन है। इसके पद 'छब्बीस करोड़' हैं। ८. आठवां 'कर्मप्रवाद' नामक पूर्व है जिसमें ज्ञानावरण आदि आठ कर्मों के बंध, सत्त्व, उदय और उदीरण आदि का तथा क्रिया रूप कर्मों का वर्णन है। इसके 'एक करोड़, अस्सी लाख' पद हैं। ६. नौवां 'प्रत्याख्यान' नामक पूर्व है जिसमें पाप के त्याग का अनेक प्रकार से वर्णन है। इसके पद 'चौरासी लाख' हैं। १०. दसवां 'विद्यानुवाद' नामक पूर्व है जिसमें 'सात सौ' क्षुद्र विद्या और 'पांच सौ' महा विद्या-इनका स्वरूप, साधन तथा मंत्रादि और सिद्ध होने पर इनके फल का वर्णन है तथा अष्टांग निमित्त ज्ञान का वर्णन है। इसके पद 'एक करोड़, दस लाख' हैं। ११. ग्यारहवां 'कल्याणवाद' नामक पूर्व है जिसमें तीर्थंकर और चक्रवर्ती आदि के गर्भ आदि कल्याणकों का उत्सव तथा उसका कारण षोडशकारण भावना और तपश्चरणादि तथा चन्द्रमा एवं सूर्य आदि के गमन विशेष आदि का वर्णन है।
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