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जो विषय विरक्त, धीर तपोधन शील रूप जल से स्नान करके सर्व कर्म मल को धोकर सिद्ध हुए
ऐसा शील
जिनवचनों से पाया जाता है
सो इस
शील पाहुड
प्रारम्भिक सूक्ति
का
वे मोक्ष मन्दिर में स्थित होकर अविनाशी सुख को भोगते हैंयह शील का माहात्म्य है।
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८-२
निरन्तर अभ्यास करना ।