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क्रमांक
विषय
२४. तप, विनय आदि रत्नों से युक्त आत्मा की शील जल से ही शोभायमानता - समुद्र के समान
८- ३०० २१. शीलवंत पुरुषों द्वारा ही मोक्ष नामक चतुर्थ पुरुषार्थ की प्राप्ति ६-३१ ३०. शील के बिना कोरे ज्ञान से मोक्ष होता तो दस पूर्व का पाठी रुद्र नरक क्यों गया
३१. शील के बिना ज्ञान ही से भावशुद्धि की असंभवता - पूर्वोक्त रुद्र का द ष्टान्त
३२. विषयविरक्त जीव द्वारा नरक की भारी वेदना को भी गंवाकर अर्हन्त पद की प्राप्ति
३३. शील से ही अतीन्द्रिय ज्ञानानन्दमय मोक्षपद का लाभ ३४. शील पवन से प्रेरित पंचाचार रूप अग्नि से पूर्वसंचित कर्मेन्धनों का दहन होता है
३५ जितेन्द्रिय, धीर एवं विषयविरत पुरुषों द्वारा कर्मदहन व मोक्ष लाभ
३६. शीलवंत गुणी महात्माओं के गुणों का विस्तार लोक में फैलता है
३७. सम्यग्दर्शन से ही जिनशासन में रत्नत्रय की अर्थात् आत्मस्वभाव रूप शील की प्राप्ति होती है
३४. विषयविरक्त धीर तपोधन शील रूपी जल से स्नान करके सिद्धालय का सुख पाते हैं
३१. क्षीणकर्मा सुख-दुःख विवर्जित आत्माओं के शील से ही कर्मरज नष्ट होकर आराधना प्रकट होती हैं
४०. अरिहंत भक्ति रूप सम्यक्त्व और विषयविरक्ति रूप शील सहित ज्ञान से ही सर्व सिद्धि 2. विषय वस्तु
3. गाथा चयन
८-४५ ८-४६ ८-४७-४८
4. सूक्ति प्रकाश
८-५
पष्ठ
5. गाथा चित्रावली
6. अंतिम सूक्ति चित्र शील पा० समाप्त
८-३२
८-३२
८-३३
८-३४
८-३५
८-३५
८-३६
८-३७
८-३८
८-३६
८-४०
८-४६-५७
८-५८