Book Title: Astapahud
Author(s): Jaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
Publisher: Shailendra Piyushi Jain

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Page 606
________________ अष्ट पाहुड areate स्वामी विरचित master • आचार्य कुन्दकुन्द POR HDoolls Dod MARVARAVAD Clot TOMJANA WANAMANAS Dool सम्यग्द ष्टि न हो और कुमार्ग का प्ररूपण करे तो वह भला नहीं, उसका ज्ञान और विषय छोडना निरर्थक है-ऐसा जानना' ।।१३।। T उत्थानिका G Cate4 आगे कहते हैं कि 'उन्मार्ग का प्ररूपण करने वाले कुमत-कुशास्त्रों की जो प्रशंसा करते हैं वे बहुत शास्त्र जानते हैं तो भी शील, व्रत और ज्ञान से रहित हैं, उनके आराधना नहीं होती' :कुमयकुसुदपसंसा जाणंता बहुविहाई सत्थाई। सीलवदणाणरहिदा ण हु ते आराहया होति।। १४।। जाने जो बहुविध शास्त्र पर, दुर्मत कुशास्त्र के प्रशंसक। व्रत, शील, ज्ञान से रहित वे, होते न आराधक प्रकट ।।१४।। 柴業%崇崇崇崇勇攀業業業事業崇崇勇崇崇崇崇勇 崇崇崇崇崇崇崇崇明崇崇勇兼崇明藥業樂業事業勇崇勇 अर्थ जो बहुत प्रकार के शास्त्रों को जानते हैं और कुमत एवं कुशास्त्रों की प्रशंसा करने वाले हैं वे शील, व्रत और ज्ञान से रहित हैं, वे इनके आराधक नहीं हैं। भावार्थ बहुत शास्त्रों को जानकर जिसको ज्ञान तो बहुत की प्रशंसा करता है तो ज्ञात होता है कि इसके कुमत और कुशास्त्र से राग है प्रीति है तब ही तो उनकी प्रशंसा करता है सो ये तो मिथ्यात्व के चिन्ह हैं और जहाँ मिथ्यात्व है वहाँ उसका ज्ञान भी मिथ्या है और विषय-कषायों से जो रहित हो उसको शील कहते हैं सो भी उसके नहीं है और उसके व्रत भी नहीं है, कदाचित् कुछ व्रताचरण करता है तो भी वह मिथ्याचारित्र स्वरूप है, इसलिए वह दर्शन, ज्ञान, चारित्र का आराधने वाला नहीं है, मिथ्याद ष्टि है।।१४।। 禁禁禁禁禁禁藥騰崇崇崇崇勇兼業助

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