Book Title: Astapahud
Author(s): Jaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
Publisher: Shailendra Piyushi Jain

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Page 617
________________ अष्ट पाहुड़ स्वामी विरचित • आचार्य कुन्दकुन्द ADOOD ADOO HDOOT MAMAYA WANAMANAS SARAMMU Dool आगे कहते हैं कि 'जो कर्मों की गाँठ विषय सेवन करके स्वयं ही बाँधी है उसको ___ सत्पुरुष तपश्चरणादि से आप ही काटते हैं':आदेहिं कम्मगंठी जा बद्धा विसयरागरंगेहिं। तं छिंदंति कयत्था तवसंजमसीलयगुणेण।। २७।। बंधी कर्म गांठ जो आतमा में, विषयराग अरु रंग से। तप, शील, संयम जनित गुण से, क तार्थजन उसे छेदते ।।२७ ।। अर्थ विषयों के राग-रंग से स्वयं ही जो कर्मों की गाँठ बाँधी है उसको क तार्थ जो उत्तम पुरुष तप, संयम एवं शील से हुआ जो गुण उसके द्वारा छेदते हैं, खोलते 戀戀养养%崇崇明藥崇崇崇泰拳事業事業事業事業事業事業助兼第 崇崇崇崇崇崇崇崇崇崇勇攀樂事業事業蒸蒸男崇勇樂 भावार्थ जो कोई आप गाँठ खोलकर बाँधता है तो उसको खोलने का विधान भी स्वयं आप ही जानता है। जैसे सुनार आदि कारीगर आभूषणादि की संधि में ऐसा टांका झालते हैं कि वह संधि यदि अद ष्ट हो जाये तो उस संधि को टांका झालने वाला ही पहिचान कर खोलता है वैसे आत्मा ने अपने ही रागादि भावों से कर्मों की गाँठ बाँधी है उसको स्वयं ही भेदज्ञान से रागादि में और आपमें जो भेद है उस संधि को पहिचानकर तप, संयम एवं शील भाव रूप शस्त्र से उस कर्मबंध को काटता है-ऐसा जानकर जो क तार्थ पुरुष हैं, अपने प्रयोजन को करने वाले हैं वे उस शील गुण को अंगीकार करके आत्मा को कर्म से भिन्न करते हैं-यह पुरुषार्थी पुरुषों का कार्य है।।२७।। टि0- 1. 'वी0 प्रति' में इस ‘आदेहिं' पाठ के स्थान पर आया हुआ 'अट्ठविह' (अर्थ-आठ प्रकार की) पाठ अत्यंत उपयुक्त जान पड़ता है क्योंकि कर्म की गांठ का यह प्रकरण है। 禁禁禁禁禁禁禁冬戀戀戀戀事業業助業 (८-२६

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