Book Title: Astapahud
Author(s): Jaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
Publisher: Shailendra Piyushi Jain

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Page 632
________________ 縢糕糕糕糕縢縢卐糝寊糕糕糕糕 आचार्य कुन्दकुन्द ● अष्ट पाहुड़ दोहा भई वचनिका यह जहां, सुनूं तास संक्षेप । भव्य जीव संगति भली, मेटै जयपुर पुर सूवस वसै, तहां ताके न्याय प्रताप तैं, सुखी जैन धर्म जयवंत जग ता मधि जिनमंदिर घणें, तिनि मैं तेरापंथ को धर्म ध्यान तामैं सदा, स्वामी विरचित ढुंढाहड़ किछु जयपुर मैं कुकरम लेप ।। १।। राज जगतेश । देश ।। २।। लेश । निवेश ।। ३ ।। एव । सुसेव ।। ४।। मैं भी इक जयचंद | मंद ।। ५ ।। सार । तार ।। ६ ।। हीनाधिक किछु अर्थ है, मंगल रूप जिनेंद्र कूं, विघन टलै शुभ बंध है, संवत्सर दश आठ शत, मास तिनिको भलो मंदिर सुंदर जैनी करै पंडित तिनि मैं वहुत हैं, प्रेऱ्यां सबकै मन कियो, करन वचनिका कुन्दकुन्द मुनिराज कृत, प्राकृत गाथा पाहुड अष्ट उदार लखि, करी वचनिका इहां जिते पंडित हुते, तिनि नैं सोधी अक्षर अर्थ सुबाँचि पढ़ि, नहि राख्यो एह । संदेह ।। ७ ।। परभाव । सोधो बुध सत भाव ।। ८ ।। नमसकार मम होहु । यह कारन है मोहु ।। ६ ।। सतसठि विक्रमराय । तौऊ कहूं प्रमाद तैं बुद्धि मंद ८-४४ 卐卐業 भाद्रपद शुकल तिथि, तेरसि पूरन थाय ।। १० ।। इति श्री कुंदकुंद आचार्य कृत अष्टपाहुड ग्रंथों की देशभाषामय वचनिका समाप्ता ।। ।। श्रीः ।। श्रीः ।। श्रीः ।। श्रीः ।। 業業業業業業業業業業業業業業業業業業 專業版

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