Book Title: Astapahud
Author(s): Jaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
Publisher: Shailendra Piyushi Jain

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Page 619
________________ अष्ट पाहुड areate स्वामी विरचित • आचार्य कुन्दकुन्द MAMAYA WANAMANAS ADOOD SARAMMU HDOOT OCE 戀戀养养%崇崇明藥崇崇崇泰拳事業事業事業事業事業事業助兼第 आगे जो शीलवान पुरुष हैं वे ही मोक्ष पाते हैं-यह प्रसिद्ध कर दिखाते हैं : सुणहाण गद्दहाण य गोपसुमहिलाण दीसदे मोक्खो। जो सोधंति चउत्थं पिच्छिज्जंता जणेहि सव्वेहिं।। २७।। जो श्वान, गर्दभ, गाय, पशु, महिला के दीखे मोक्ष ना। पुरुषार्थ चौथा शोधे जो, उस ही के दिखता मोक्ष है।।२७ ।। अर्थ आचार्य कहते हैं कि श्वान, गधे में तथा गौ आदि पशु और स्त्री में किसी को मोक्ष होना दीखता है क्या? वह तो दीखता नहीं है। मोक्ष तो चौथा पुरुषार्थ है इसलिए चतुर्थ जो चौथा पुरुषार्थ उसको जो सोधते हैं, खोजते हैं उन्हीं के मोक्ष होना देखा जाता है। भावार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-ये चार पुरुष के ही प्रयोजन कहे हैं-यह प्रसिद्ध है, इसी से इनका नाम पुरुषार्थ-ऐसा प्रसिद्ध है। वहाँ इनमें चौथा पुरुषार्थ मोक्ष है उसको पुरुष ही सोधते हैं और पुरुष ही उसको खोजकर उसकी सिद्धि करते हैं, अन्य श्वान, गधे, बैल, पशु और स्त्री-इनके मोक्ष का शोधना प्रसिद्ध नहीं है, यदि होता तो मोक्ष का "पुरुषार्थ' ऐसा नाम क्यों होता ! यहाँ आशय ऐसा है कि 'मोक्ष शील से होता है। जो श्वान, गधे आदि हैं वे तो अज्ञानी हैं, कुशीली हैं, उनका स्वभाव-प्रक ति ही ऐसी है कि पलटकर मोक्ष होने योग्य तथा उसके सोधने योग्य नहीं है इसलिए पुरुष को मोक्ष का साधन शील को जानकर अंगीकार करना चाहिए। जो सम्यग्दर्शनादि हैं वे इस शील ही के परिवार पूर्व में कहे ही हैं-ऐसा जानना' ।।२६ ।। 崇崇崇崇崇崇崇崇崇崇勇攀樂事業事業蒸蒸男崇勇樂 勇崇崇明藥業樂業業、 ८.३१ 崇明藥業業助業坊業

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