Book Title: Astapahud
Author(s): Jaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
Publisher: Shailendra Piyushi Jain

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Page 611
________________ अष्ट पाहुड areate स्वामी विरचित • आचार्य कुन्दकुन्द ADOOD MAMAYA WANAMANAS SARAMMU HDOOT Don आगे शील है सो ही तप आदि है-इस प्रकार से शील की महिमा कहते हैं: सीलं तओ विसुद्धं दंसणसुद्धी य णाणसुद्धी य। सीलं विसयाण अरी सीलं मोक्खस्स सोपाणं ।। २०।। दर्शन की शुद्धी, ज्ञानशुद्धी, तपविशुद्धी शील ही। है शील विषयों का अरि, सोपान है ये मोक्ष का ।।२० ।। अर्थ 戀戀养养%崇崇明藥崇崇崇泰拳事業事業事業事業事業事業助兼第 शील है सो ही विशुद्ध निर्मल तप है, शील है सो ही दर्शन की शुद्धता है, शील है सो ही ज्ञान की शुद्धता है, शील है सो ही विषयों का शत्रु है तथा शील है सो ही मोक्ष की पैड़ी है। भावार्थ जीव-अजीव आदि पदार्थों का ज्ञान करके उसमें से मिथ्यात्व और कषायों का अभाव करना सो सुशील है सो यह आत्मा का ज्ञान स्वभाव ही है। सो जब संसार प्रक ति मिटकर मोक्ष सन्मुख प्रक ति होती है तब इस शील ही के ये तप आदि सब पर्याय नाम हैं। निर्मल तप, शुद्ध दर्शन-ज्ञान, विषय-कषायों का मिटना और मोक्ष की पैड़ी-ये सब शील के नाम के अर्थ हैं। इस प्रकार शील के माहात्म्य का वर्णन किया है तथा केवल महिमा ही नहीं है इन सब भावों का अविनाभावीपना बताया है ।।२०।। 崇崇崇崇崇崇崇崇崇崇勇攀樂事業事業蒸蒸男崇勇樂 उत्थानिका आगे कहते हैं कि 'विषय रूपी विष महा प्रबल है' :जह विसय लुद्धविसदो तह थावर जंगमाण घोराणं। सव्वेसि पि विणासदि विसयविसं दारुणं होई ।। २१।। 樂業樂業業助業業、 ※崇明藥業業助業坊業 ८-२३

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