Book Title: Astapahud
Author(s): Jaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
Publisher: Shailendra Piyushi Jain

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Page 613
________________ अष्ट पाहुड़ati. स्वामी विरचित DO • आचार्य कुन्दकुन्द Dod Glooct AMMMMA WANAMANAS SARAMMU भावार्थ अन्य सादि के विष से विषयों का विष प्रबल है, इनकी आसक्ति से ऐसा कर्मबंध होता है जिससे बहुत जन्म मरण होते हैं।।२२।। 樂樂男男飛崇崇禁禁禁禁禁禁禁禁禁藥男男戀 आगे कहते हैं कि 'विषयों की आसक्ति से चतुर्गति में दुःख ही पाता है' : णरएसु वेयणाओ तिरिक्खए माणवेसु दुक्खाई। देवेसु वि दोहग्गं लहंति विसयासत्ता जीवा।। २३।। जो जीव विषयासक्त वे, पाते नरक की वेदना। तिर्यंच, मानव दुःख अरु, देवों में भी दुर्भाग्य को ।।२३।। अर्थ जो विषयों में आसक्त जीव हैं वे नरकों में अत्यन्त वेदना को पाते हैं और तिर्यंचों में तथा मनुष्यों में दुःखों को पाते हैं और यदि देवों में उत्पन्न हों तो वहाँ भी दुर्भगपना पाते हैं अर्थात् नीचे देव होते हैं-इस प्रकार चारों ही गतियों में वे दुःख ही पाते हैं। भावार्थ विषयासक्त जीवों को कहीं भी सुख नहीं है, परलोक में तो वे नरक आदि के दुःख पाते ही हैं पर इहलोक में भी इनके सेवन में आपदा व कष्ट आते हैं तथा सेवन करते हुए आकुलतामय दुःख ही है, यह जीव भ्रम से सुख मानता है, सत्यार्थ ज्ञानी तो विरक्त ही होते हैं।।२३।। 崇崇崇崇崇崇崇崇崇崇勇攀樂事業事業蒸蒸男崇勇樂 आगे कहते हैं कि 'विषयों को छोड़ने में कुछ भी हानि नहीं है' : ८-२५ 7mmy <崇明藥藥業業業助業

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