Book Title: Astapahud
Author(s): Jaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
Publisher: Shailendra Piyushi Jain

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Page 614
________________ 卐業卐業業業業業業卐業業業業業業業卐糕糕 आचार्य कुन्दकुन्द ● अष्ट पाहुड़ स्वामी विरचित तुसधम्मंतवलेण य जह दव्वं ण हि णराण गच्छेदि । तवसीलमंत कुसली खवंति विसयं विसय व खलं ।। २४ ।। तुष उड़ाने से द्रव्य कुछ भी, जाता नहिं है नर का ज्यों । त्यों शील तपयुत कुशल नर, विषयों का खलवत् क्षेपते । । २४ । । अर्थ जैसे तुषों के चलाने से, उड़ाने से मनुष्यों का कुछ द्रव्य नहीं जाता है वैसे ही जो तप और शीलवान प्रवीण पुरुष हैं वे विषयों को खल की तरह फैंक देते हैं, दूर कर देते हैं।' भावार्थ तप, शील सहित जो ज्ञानी हैं उनके इन्द्रियों के विषय खल की तरह हैं। जैसे ईख का रस निकाल लेने के बाद खल पूरी तरह नीरस हो जाता है तब वह फैंक देने योग्य ही होता है वैसे ही विषयों का जानना रस था सो तो ज्ञानियों ने जान लिया तब विषय तो खल के समान रहे उनके त्यागने में क्या हानि है अर्थात् कुछ भी नहीं है । धन्य हैं वे ज्ञानी जो विषयों को ज्ञेयमात्र जानकर आसक्त नहीं होते हैं और जो आसक्त होते हैं वे तो अज्ञानी ही हैं क्योंकि जो विषय हैं वे तो जड़ पदार्थ हैं, सुख तो उनको जानने से ज्ञान में ही था, अज्ञानी ने आसक्त होकर विषयों टि0- 1. 'कु० कु० भा०' में इस गाथा का अर्थ किया है कि 'जिस प्रकार तुष को उड़ा देने वाला सूपा आदि जो ‘तुषध्मत्’ कहलाता है, उसके बल से मनुष्य सारभूत द्रव्य को बचाकर तुष को उड़ा देता है-फैंक देता है उसी प्रकार तप और उत्तम ील के धारक पुरुष ज्ञानोपयोग के द्वारा विषयभूत पदार्थों के सार को ग्रहण कर विषयों को खल के समान दूर छोड़ देते हैं।' वहीं आगे लिखा है- 'अथवा एक भाव यह भी प्रकट होता है कि कुल मनुष्य को दुष्ट विष के समान छोड़ देते है । विषय 卐業卐糕糕卐 'म0 टी0' में लिखा है कि 'इन विष तुल्य विषयों का त्याग करने में तपस्वी व लवान पुरुषों को कोई नुकसान नहीं होता, उल्टा लाभ ही होता है क्योंकि उनके त्याग के बदले उन्हें शुद्धात्मस्वरूप की अनुभूति की शक्ति की प्राप्ति होती है।' *業業業業業 專業版

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