Book Title: Astapahud
Author(s): Jaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
Publisher: Shailendra Piyushi Jain

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Page 602
________________ अष्ट पाहुड areate स्वामी विरचितYoe master o आचार्य कुन्दकुन्द HDooo Dod SARAMMU BY: Clot TOMJANA KWANAMANAS Dool भावार्थ ___ जो ज्ञान पाकर विषय-कषाय छोड़ ज्ञान की भावना करता है और मूलगुण व उत्तरगुण ग्रहण करके तप करता है वह संसार का अभाव करके मुक्ति को प्राप्त होता है-यह शील सहित ज्ञान रूप मार्ग है।।८।। उत्थानिका 崇崇崇崇榮樂樂業先業事業事業樂業兼業助兼崇明 आगे इस प्रकार शील सहित ज्ञान से जीव शुद्ध होता है इसका दष्टान्त-दार्टान्त कहते हैं :जह कंचणं विसुद्ध धम्मइयं खडियलवणलेवेण। तह जीवो वि विसुद्धं णाणविसलिलेण विमलेण।। 9।। धमता हुआ कंचन विशुद्ध ज्यों, लवण खड़िया लेप से। त्यों विमल ज्ञान सलिल से, प्रक्षालित हो जीव विशुद्ध हो।।9।। अर्थ जैसे कंचन-सुवर्ण है सो 'खडिय' अर्थात् सुहागे और नमक के लेप से विशुद्ध निर्मल कांति युक्त होता है वैसे जीव है सो भी विषय-कषायों के मल से रहित निर्मल ज्ञान रूप जल से प्रक्षालित हुआ कर्मों से रहित विशुद्ध होता है। भावार्थ ज्ञान है सो आत्मा का प्रधान गुण है परन्तु वह मिथ्यात्व और विषय-कषायों से मलिन है, इसलिए मिथ्यात्व व विषय-कषायों रूप मल को दूर कर उज्ज्वल करके उसकी भावना करे, उसे एकाग्र करके उसका ध्यान करे तो कर्मों का नाश कर अनंत चतुष्टय प्राप्त करके मुक्त होकर शुद्ध आत्मा होता है, यहाँ सुवर्ण का द ष्टान्त है सो जानना ।।६।। उत्थानिका 崇兼崇崇明兼帶男先業崇崇勇兼%樂事業事業樂業男樂樂 @ ND) आगे कहते हैं कि 'ज्ञान पाकर विषयासक्त होता है सो ज्ञान का दोष नहीं है, कुपुरुष का दोष है : ८-१४ 戀戀戀崇明藥業業

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