Book Title: Astapahud
Author(s): Jaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
Publisher: Shailendra Piyushi Jain

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Page 529
________________ अष्ट पाहड स्वामी विरचित आचार्य कुन्दकुन्द I .00 GGC Dool DOG (SO भावार्थ १.आत्मा का निश्चय-व्यवहारात्मक तत्त्वार्थश्रद्धान रूप परिणाम सो तो सम्यक्त्व है, २.उन ही तत्त्वार्थों में श्रद्धानपूर्वक ज्ञान परिणाम सो सम्यग्ज्ञान है, ३.सम्यग्ज्ञान से तत्त्वार्थों को जानकर रागद्वेषादि से रहित परिणाम सो सम्यक् चारित्र है तथा ४.अपनी शक्ति के अनुसार सम्यग्ज्ञानपूर्वक कष्ट का आदर करके स्वरूप को साधना सो सम्यक् तप है-इस प्रकार ये चारों ही परिणाम आत्मा के हैं इसलिये आचार्य कहते हैं कि मुझे आत्मा ही की शरण है, इस ही की भावना में चारों आ गये। अंत सल्लेखना में जो चार आराधना का आराधन कहा है वहाँ सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप-इन चारों का उद्योतन, उद्यवन, निर्वहण, साधन और निस्तरण-ऐसे पांच प्रकार से आराधन कहा है सो आत्मा की भावना भाने में ये चारों आ गये और इस प्रकार अंत सल्लेखना की भी भावना इस ही में आ गई-ऐसा जानना तथा आत्मा ही परम मंगलस्वरूप है-ऐसा भी बताया है।।१०५ ।। उत्थानिका 添添添添添樂業%崇崇崇崇勇涉嫌崇勇攀事業事業 崇先养养步骤崇禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁 आगे यह ‘मोक्षपाहुड' ग्रंथ पूर्ण किया सो इसको पढ़ने, सुनने तथा भाने का ___ फल कहते हैं :एवं जिणपण्णत्तं मोक्खस्स य पाहुडं सुभत्तीए। जो पढइ सुणइ भावइ सो पावइ सासयं सुक्खं ।। १०६।। जिनवरप्रणीत जो मोक्षपाहुड़ उसको भक्ति युक्त हो। अध्ययन, श्रवण करे व भावे, पाता शाश्वत सौख्य वो । ।१०६ ।। अर्थ 'एवं' अर्थात् ऐसे पूर्वोक्त प्रकार जो जिनदेव ने कहा ऐसा 'मोक्षपाहुड' ग्रंथ है उसको जो जीव भक्ति भाव से पढ़ते हैं, सुनते हैं और उसकी बारम्बार चिंतवन रूप भावना करते हैं वे जीव शाश्वत सुख जो नित्य, अतीन्द्रिय और ज्ञानानंदमय सुख उसको पाते हैं। 兼業助業崇明藥業業、崇崇崇崇崇崇明

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