________________
'तो फिर यह प्रेरणा स्त्री में क्यों नहीं हो सकती?' स्थूलभद्र हंसने लगे।
'तुम्हें जितना परिचय वीणा का है, उतना स्त्री का नहीं है। तुम स्त्री के परिचय में आ सको, ऐसा मुझे प्रयत्न करना है और फिर मैं मुक्ति की प्रेरणा का उत्तर तुमसे मांग सकूँगा। आज तुम भले ही अपने आग्रह पर डटे रहो किन्तु मैं जानता हूँ कि संगीत को मुक्ति की प्रेरणा मानने वाला मनुष्य एक दिन अवश्य ही स्त्री की प्रेरणा स्वीकार करेगा।'
'मैं तुम्हारे इस कथन को व्यर्थ कर दूंगा।' 'यह अशक्य है !' चाणक्य ने दृढ़ स्वर में कहा। नौका तट की ओर मुड़ी।
३३
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org