Book Title: Arya Sthulabhadra aur Kosha
Author(s): Mohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 285
________________ ५१. मंगल परिवर्तन विश्व का प्रत्येक पदार्थ परिवर्तनशील होता है। ऐसा एक भी पदार्थ नहीं है, जिसमें क्षण-क्षण परिवर्तन घटित नहीं होता हो। शरीर में भी परिवर्तन होता रहता है। बाल्यकाल में जैसा शरीर होता है, वैसा किशोर अवस्था में नहीं होता और किशोरकाल का शरीर मदभरे यौवनकाल के शरीर की तुलना नहीं कर सकता। यौवनकाल का शरीर जितना सरस होता है उतना ही वह विरस हो जाता है बुढ़ापे में। इसी प्रकार मनुष्य के भावों में भी परिवर्तन आता रहता है। जो आज प्रिय लगता है, वह कल अप्रिय बन जाता है। जो आज स्वीकार करने योग्य लगता है, वह कल त्याज्य बन जाता है। ___ कामजित् मुनि स्थूलभद्र के प्रस्थान के बाद दूसरे ही दिन रूपकोशा के जीवन की दिशा बदल गई। उसका चिन्तन बदल गया। सबसे पहले वह मगधेश्वर के पास गई। उसने मन में यह दृढ़ निश्चय कर लिया था कि उसे राजनर्तकी के गौरवमय पद से हट जाना है। वह मगधेश्वर से मिली। उनके सामने अपनी भावना प्रकट की। सम्राट् ने रूपकेशा के मुंह से पद-त्याग की बात सुनकर आश्चर्य व्यक्त किया। उन्होंने पूछा- 'कोशा! किसी ने तुम्हारा तिरस्कार तो नहीं किया है ?' 'नहीं, कृपावतार ! मैं अब धर्म की आराधना में लग जाना चाहती हूं। आर्य स्थूलभद्र मेरी चित्रशाला में चातुर्मास बिताकर कल यहां से प्रस्थान कर गए। मैंने संगीत और नृत्य का त्याग कर दिया है। ऐसी स्थिति में राजनर्तकी के पद पर मैं कैसे रह सकती हूं।' कोशा ने विनम्रता से कहा। आर्य स्थूलभद्र और कोशा २७४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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