Book Title: Arya Sthulabhadra aur Kosha
Author(s): Mohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 305
________________ रुदन के कारण चित्रलेखा कुछ भी न बोल सकी। वह बहन के चरणों में लुट गई और आंसुओं से बहन के पैर पखारने लगी। और. वह भावावेश के कारण वहीं मूर्छित हो गई। कोशा नौका में बैठी। नौका वहां से चली। गंगा का प्रवाह शांत था। कोशा का हृदय शांत था, वसंत का सवेरा शांत था और नौका की गति भी शांत थी। मुक्ति का महागीत मानव हृदय को जागृत कर रहा था। चित्रलेखा मूर्च्छित अवस्था में पड़ी थी और अन्य सब सदस्य कोशा को ले जाने वाली नौका को अपलक देख रहे थे। पाटलीपुत्र की शोभा आज सभी बन्धनों को तोड़कर मंगल प्रयाण कर रही थी। . रूपकोशा नृत्यांगना....रूपकोशा स्थूलभद्र की प्रेरणा....रूपकोशा सब कुछ। 000 आर्य स्थूलभद्र और कोशा २६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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