Book Title: Arya Sthulabhadra aur Kosha
Author(s): Mohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 302
________________ चित्रलेखा बोली- 'बहन! आपने मुझे बहुत दे डाला है। अब शेष क्या बचा है?' ___कोशा ने कहा- 'नृत्य-कला की अन्तिम सिद्धि शेष रही है। वह है-सूचिका नृत्य।' चित्रलेखा चौंकी। उसने कहा- 'देवी!' कोशा बोली- 'इसमें चौंकने जैसी कोई बात नहीं है, चित्रलेखा! यह नृत्य सैकड़ों वर्षों तक असाध्य रहा है। मैंने कठोरतम श्रम कर गुरुदेव की कृपा से इसमें सिद्धि प्राप्त की है। यदि तू इसे सिद्ध कर लेगी तो इस नृत्य का लोप नहीं होगा।' एक सप्ताह के पश्चात् कोशा ने चित्रलेखा को सूचिका नृत्य का अभ्यास कराना प्रारम्भ कर दिया। पहले ही दिन चित्रलेखा सूचिका नृत्य की भयानकता से घबरा गई। तीखी सूचिकाओं पर मुक्तभाव से नृत्य करना....सरसों के ढेरों का स्पर्श न करना....कमल पत्रों का वेध भी न हो, इस प्रकार नाचना और यदि प्रमादवश स्खलना हो जाए तो सारी तीखी सूचिकाएं नृत्यांगना के कोमल तलवों के आर-पार हो जाएं....और वह नृत्यांगना सदा-सदा के लिए नर्तकी का रूप खो बैठे। यह थी उसकी भयानकता। चित्रलेखा घबरा गई। उसने कोशा से कहा-बहन ! जो कुछ भी मेरे पास है, वह पर्याप्त है। मैं इस कला को हस्तगत नहीं कर पाऊंगी। इसकी सिद्धि अत्यन्त कठोर तपस्या से ही संभव हो सकती है। मुणे अपूर्ण ही रहने दें।' ममतामयी रूपकोशा ने चित्रलेखा को छाती से लगाते हुए कहालेखा! जो है उसकी सुरक्षा करना। इस सूचिका-नृत्य के लिए मैं कोई आग्रह नहीं करूंगी, क्योंकि इसकी अन्तिम सिद्धि जीवन और मृत्यु के प्रश्न के समान है।' चित्रलेखा मौन रही। एक दिन..... २६१ आर्यस्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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