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१०. नृत्यांगना
वर्षा का तांडव प्रारम्भ हुआ। गंगा का वेग प्रबल बना। आकाश में बादलों का घटाटोप अभेद्य हो गया। बिजली की कड़क से सारी दिशाएं कांप उठीं। मेघ के प्रचण्ड आक्रमण से वन-उपवन, वाटिकाएं तथा खेत जल से प्लावित हो गए। पपीहा करुण रुदन करने लगा। उसकी ध्वनि से रात्रि का समय और अधिक गम्भीर हो गया। मेंढ़कों की तीव्र ध्वनि वर्षा के तांडव में ताल का काम कर रही थी। पाटलीपुत्र नगर वर्षा के पानी से भर गया।
आषाढ़ महीने की द्वितीया, अन्धकारमय रात्रि, गगन का गरिव, विद्युत् की चमचमाहट-मानो कि प्रलय और नवसर्जन का संयोग।
देवी सुनन्दा के चित्र-प्रासाद में आज भारी हलचल थी। महाप्रतिहार विमलसेन अपने तीन सौ सशस्त्र सैनिकों के साथ भवन की व्यवस्था में व्यस्त था। मगधपति के नौकर-चाकर तथा अंगरक्षक भवन के चारों ओर घूम-फिर रहे थे।
आज मगधराज घननंद महादेवी सुप्रभा के साथ देवी सुनंदा के आतिथ्य को स्वीकार करने आने वाले थे। उनके साथ महामंत्री शकडाल, आचार्य कुमारदेव और चाणक्य भी आने वाले थे।
कोशा के नृत्य का आज परीक्षा-काल था। मगध-सम्राट् की भावी राजनर्तकी की कला का आज प्रदर्शन था।
देवी सुनन्दा की सारी परिचारिकाएं नृत्यभूमि की रचना में कार्यरत थीं। आज कुमारदेव के शिष्य भी उनको सहयोग दे रहे थे।
कोशा अपने वस्त्रगृह में रूप-सज्जा कर रही थी। चित्रा और हंसनेत्रा-दोनों परिचारिकाएं कोशा के वस्त्रालंकारों को सजा रही थीं।
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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