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सुकेतु बोला- 'महामंत्री से कोई बातचीत न की जाए। महामंत्री सामान्य व्यक्ति नहीं हैं। वे अपनी योजना को दूसरा रूप भी दे सकते हैं और इससे सम्राट् पर आपत्ति आ सकती है।'
_ 'सुकेतु की बात मुझे तथ्यपूर्ण लगती है। सर्प में विष है या नहीं, इस परीक्षण में व्यक्ति को कालक्षेप नहीं करना चाहिए। महामंत्री के उपकार अनन्त हैं इस मगध देश पर, इसलिए मृत्युदण्ड से पहले उन्हें पश्चात्ताप करने का एक अवसर दिया जाएगा। महामंत्री जो राजद्रोह करने पर उतारू हैं, इसके लिए उनका और उनके पूरे कुटुम्ब का वध किया जाएगा। वध का निश्चित दिन और समय का मैं निर्णय करूंगा। सम्राट् ने अपना अंतिम निर्णय सुना दिया।'
'धन्य हैं, मगध के स्वामी!' सुकेतु ने हर्ष से कहा। विमलसेन का हृदय रो पड़ा।
सम्राट् का निर्णय सुनकर सब अपने-अपने आवास-स्थल की ओर लौट आए। महाप्रतिहार विमलसेन अपने घर न जाकर सीधे महामंत्री के घर की ओर रवाना हुआ। उसके हृदय में अपार वेदना थी। महामंत्री की प्रामाणिकता और राजभक्ति के प्रति वह श्रद्धानत था। उसके मन में अनेक प्रश्न उभरने लगे। क्या यह महामंत्री के विरोधियों द्वारा बिछाया हुआ जाल तो नहीं है ? इस जाल में फंसकर सम्राट् अन्याय तो नहीं कर देंगे? यदि शकडाल पर अन्याय हुआ तो मगध का राज्य सिंहासन अस्त-व्यस्त हो जाएगा।
विमलसेन का हृदय प्रकंपित हो रहा था। जब वह मंत्रीश्वर के प्रासाद पर पहुंचा तब रात्रि का तीसरा प्रहर चल रहा था। पहरेदार इधर-उधर घूम रहे थे। द्वारपाल को अपना परिचय देकर विमलसेन अन्दर गया। महामंत्री निद्राधीन थे। एक परिचारक ने उन्हें जगाया। वे नीचे आए। विमलसेन ने उनका अभिवादन किया। महामंत्री ने कहा
'विमल! अभी कैसे आना हुआ? मगधेश्वर स्वस्थ तो हैं न?'
'हां, महाराज! मगधेश्वर कुशल हैं।' विमलसेन ने कहा। १७६
आर्यस्थूलभद्र और कोशा
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