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मगध को बचाने के लिए मैंने वररुचि के दंभ की पोल खोली। मुझे ज्ञात नहीं था कि वररुचि इतना क्षुद्र और तुच्छ है। उसने द्वेषवश अन्य राजपुरुषों के साथ मेरी प्रतिष्ठा को मिटाने का षड्यंत्र रचा। तेरे विवाह के प्रसंग पर उपहारस्वरूप दिए जाने वाले शस्त्रों के निर्माण की बात का वररुचि ने दुरुपयोग किया। उसने एक श्लोक द्वारा यह प्रचारित किया कि महामंत्री इन शस्त्रों से सम्राट् का संहार कर श्रीयक को मगध का राज देना चाहते हैं। सम्राट् इस षड्यंत्र के शिकार हुए। उनका मन संदेहों से भर गया। उन्होंने विरोधियों की बातों को सही मान लिया। कल ही उन्होंने शकडाल के पूरे परिवार का वध करने का निर्णय ले लिया है। मुझे ये समाचार ज्ञात हुए हैं। मैं चाहूं तो अभी अपने परिवार के साथ मगध का त्याग कर अन्यत्र जा सकता हूं। और चाहूं तो सम्राट् और उनके सभी स्वजनों, मंत्रियों को कारागार में डाल सकता हूं। किन्तु मैं केवल मगध का मंत्री ही नहीं हूंमगध का सेवक भी हूं और महात्मा कल्पक का वंशधर हूं। कुल-गौरव और मगध की सन्तानत्व की मुझे अधिक चिन्ता है।'
श्रीयक नम्र स्वर में बोला-'पिताजी ! क्या मगधेश्वर के संदेह को दूर नहीं किया जा सकता?'
'दूर किया जा सकता है, किन्तु मैं ऐसा नहीं चाहता। राजाओं के हृदय शून्य होते हैं। वे सत्यासत्य का निर्णय करने में भी प्रमादी होते हैं। उनकी शंका का निवारण करना मुझे उचित नहीं लगता। यदि यह प्रश्न मेरा नहीं होता, और किसी का होता तो मैं स्वयं सम्राट् को समझा देता। किन्तु आज स्थिति कुछ और है। इसीलिए मैंने यह निर्णय किया है।'
पिता की दर्द भरी वाणी श्रीयक रोते-रोते सुनता रहा।
शकडाल ने आगे कहा- 'श्रीयक! अब परीक्षा का समय आ गया है। मेरी प्रतिष्ठा को आंच न आए, यह तुझे करना है। तू साहस को मत खो बैठना । मेरा मस्तक धड़ से अलग कर देने पर यदि सम्राट् प्रश्न करें तो तुझे स्वामी-भक्ति का परिचय देते हुए कहना है - मैं सम्राट् का अंगरक्षक हूं। जो व्यक्ति सम्राट् की हत्या कर अपने पुत्र को राजसिंहासन पर बिठाना
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आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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