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'हां, तुम शान्ति से सो जाओ। तुम्हारी अस्वस्थता का समाचार सुनकर सम्राट् भी अत्यन्त चिन्तातुर हो गए हैं । '
उपचार चला। कोशा स्वस्थ होकर श्य्या पर बैठी । कोशा को भान हुआ कि शरीर चकनाचूर हो रहा है। उसे बैठने में अत्यन्त कष्ट का अनुभव हो रहा है। चित्रा ने कहा- 'देवी! आप सो जाएं।'
'चित्रा ! मेरा हृदय टूट गया है। बोल, स्वामी लौट आए भवन में ?' 'देवी...!'
'जो हुआ है वह बता । उनका सिर लहूलुहान था .... उनका वदन निरावरण था.... उन्होंने एक चरण भी धरती पर नहीं रखा था... अच्छा, बता, क्या तुम सबने उनको लौट आने के लिए विवश नहीं किया ?'
‘देवी! वे चले गए। हमारी प्रार्थना के स्वर उनके हृदय का स्पर्श नहीं कर सके। हमारे आंसू उनको नहीं रोक सके । ' चित्रा ने कहा ।
'चित्रा! तू मुझे उनके पीछे ले चल.... मैं किसी भी उपाय से उन्हें यहां ले आऊंगी....मैं अपना रक्त बहाकर भी उन्हें रोक लूंगी... वे किस ओर गए हैं ?'
'देवी! उनको गए आज तीसरा दिन है। वे गंगा के उस पार वन में चले गए हैं।'
'तीसरा दिन ? क्या मैं सो रही थी ?'
'नहीं, देवी!....आप भयंकर मूर्च्छा में थीं।' चित्रा ने कहा ।
'ओह, भयंकर मूर्च्छा से भयंकर मृत्यु ने मुझे क्यों नहीं उठा लिया ? चित्रा ! मेरे जीवन की सारी आशाएं भस्मीभूत हो गईं.... मेरा गर्व चकनाचूर हो गया.....मेरी शक्ति नष्ट हो गई ।'
'देवी! आप शांत रहें। राजपुरुष कहते थे कि स्थूलभद्र वनवास से ऊबकर स्वयं यहां चले आएंगे। आप धैर्य न खोएं।'
'चित्रा ! राजपुरुष सारे मूर्ख हैं। आर्य स्थूलभद्र अब कभी नहीं लौटेंगे ।' 'आएंगे, जरूर आएंगे। ज्ञातपुत्र महावीर का मार्ग अत्यन्त कठिन है । सुकुमार पुरुष इस मार्ग पर नहीं चल सकते। आवेशवश गृह त्याग
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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