Book Title: Arya Sthulabhadra aur Kosha
Author(s): Mohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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'चित्रा! अभी दो मास बाकी हैं...मैं टूट चुकी हूं, यह सत्य है, पर मैं अब भी प्रयत्न करने के लिए तैयार हूं। पति को प्राप्त करने के लिए पत्नी जो कुछ कर सकती है, वह सब कुछ मैं करने के लिए तैयार हूं। ओह! किसका आश्रय लूं?'
चित्रा विचारमग्न हो गई। कोशा आंखें बन्दकर बैठ गई। अचानक चित्रा बोली- 'देवी ! एक उपाय सूझ रहा है।'
'बोल, बोल, चित्रा! क्या है वह उपाय ? कठोरतम तप करने के लिए भी मैं तैयार हूं।'
'आपको याद है, महात्मा शाम्ब कापालिक आपके नृत्य पर बहुत प्रसन्न हुए थे।'
'हां, पर उससे क्या?'
"मैंने सुना है कि उनके पास महावशीकरण अंजन है। उस अंजन को आंखों में आंज कर यदि आप स्थूलभद्र की ओर देखेंगी तो वे आपके वश में हो जाएंगे।'
कोशा चिन्तन में डूब गई। वह दो क्षण रुककर बोली- 'पर उसके पास कौन जाए? वह कापालिक है, नरबलि मांगता है। और भी अनेक जीवों की प्राण-बलि देनी पड़ेगी। स्वामी को प्राप्त करने के लिए ऐसा जघन्य उपाय कैसे किया जाए ?'
चित्रा विचारों में डूब गई।
कोशा बोली-'चित्रा ! मेरे मनोहारी नृत्यों का वशीकरण भी मुनि को वश में नहीं कर सका तो कापालिक का वशीकरण क्या असर करेगा?'
चित्रा बोली- 'देवी! एक बात और है। महात्मा सिद्धरसेश्वर ने आपको चिरयौवन का वरदान दिया था।'
'मुझे याद है। यदि वे चिरयौवन का वरदान नहीं देते तो आज मैं अधिक सुखी होती।'
चित्रा ने कहा- 'जो व्यक्ति चिरयौवन का वरदान दे सकता है, क्या वह मुनि के प्राणों में यौवन के प्रति आकर्षण पैदा नहीं कर सकता? जिसके आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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