Book Title: Arya Sthulabhadra aur Kosha
Author(s): Mohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 280
________________ इधर कोशा के प्राण मुनि प्राणों की कविता सुन रहे थे....वह कविता छोटी थी....बिलकुल छोटी। वह थी-यह सब मिथ्या है....राग-रंग मिथ्या है....नाशवान है। नृत्य करते-करते दो प्रहर बीत गए। कोशा के सुकोमल चरण श्लथ हो गए....वाद्यकारों के हाथ शिथिल हो गए....वाद्य भी रोने लगे....चित्रा बेचारी निराशा में ही डूबी रही। किन्तु कोशा आशा के अंतिम तंतु के सहारे सोच रही थी-संभव है दिव्य औषधि का प्रभाव अब हो....अब हो नृत्य का प्रभाव । ओह! क्या स्थूलभद्र का हृदय वज्र का है ? क्या मुनि के हृदय की सारी ममता जलकर राख हो गई? क्या मुनि की जठराग्नि इतनी प्रबल है कि जिसने दिव्य औषधि के गुण-धर्म को भी जला डाला? कोशा ने शेष शक्ति को बटोरा । वह अब उद्दाम भाव से नाचने लगी। अनंग का प्रभाव फैलने लगा-फूल टूट-टूटकर बिखरने लगे....आंखें बंद होने लगी....पैर धूजने लगे। नहीं, नहीं.... नृत्य करते-करते यदि मर भी जाऊं तो क्या है? किन्तु चाहने पर मृत्यु मिलती नहीं। दूसरी दो घटिकाएं भी बीत गईं। दक्षक की बांसुरी गिर पड़ी....सोल्लक का मृदंग टूट गया....सोमदत्त मूर्छित होकर गिर पड़ा। कोशा का हृदय जोर-जोर से धड़कने लगा....सिर चकराने लगा। नहीं...नहीं...भले ही सारे वाद्य टूट जाएं-मेरी आत्मा अभी नहीं टूटी है....मेरा प्रेम अभी अखण्ड है। किन्तु अब शक्ति नहीं रही। आंखों में अंधियारा छाने लगा। कोशा ने मुनि की ओर देखा। मुनि निर्विकार दृष्टि से कोशा को देख रहे थे। कोशा अचानक नृत्यमंच से नीचे उतरी और लड़खड़ाते पैरों से मुनि के पास गई- 'मुझे क्षमा करें...मैं एक निर्बल नारी हूं....' कहकर वह मुनि के चरणों में गिर पड़ी। चित्रा निकट आयी। उसने कोशा को संभाला। २६६ आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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