________________
सम्राट् ने गुप्त रूप से जांच-पड़ताल की। उन्हें यह निश्चय हो गया कि नये शस्त्रों के निर्माण से शकडाल मेरे रक्त का उत्सव कर अपना स्वप्न सिद्ध करेगा।
शकडाल के शत्रुओं ने सम्राट् के परिवर्तन को भांप लिया।
कुछेक दिनों से महामंत्री ने सम्राट् के इस मानस-परिवर्तन को जान लिया। उन्होंने सम्राट् के मन को पढ़ना चाहा, पर उसका पूरा विश्लेषण नहीं कर सके । महामंत्री को इतना निश्चय तो अवश्य ही हो गया कि सम्राट विरोधियों के जाल में फंस चुके हैं।
रात्रि का दूसरा प्रहर। सम्राट् के मंत्रणागृह में सुकेतु, अर्थमंत्री, महाप्रतिहार, महादंडनायक आदि राज्य के उच्च अधिकारी गण उपस्थित थे। सम्राट् के मुख्य अंगरक्षक श्रीयक को बाहर भेज दिया गया। महामंत्री का आसन खाली पड़ा था। कोई भी मंत्रणा आज तक बिना महामंत्री के कभी नहीं हुई। आज ही यह मगध साम्राज्य का दुर्दिन आया है।
मंत्री गंभीर थे। सम्राट् ने सुकेतु से कहा- 'क्या और अधिक जांचपड़ताल की आवश्यकता है?'
_ 'नहीं, महाराज! मेरी दृष्टि में पूरी खोज हो चुकी है। यदि हम कालक्षेप करेंगे तो संभव है महामंत्री सावधान होकर कुछ अनर्थ कर बैठें।'
सम्राट् ने अर्थमंत्री की ओर देखा। अर्थमंत्री ने कहा- 'आर्य सुकेतु ने जो कहा है, वह यथार्थ है। शत्रु का दमन प्रारम्भ में ही कर देना चाहिए। यह शकडाल की राजनीति है।'
'ठीक है, शकडाल की राजनीति शकडाल को ही ले डूबेगी। सुबाहु ! तुम्हारा अभिमत क्या है ?' सम्राट् ने पूछा।
'मैं तो केवल एक सैनिक हूं। आप जो सोचेंगे, वह उचित ही होगा।'
विमलसेन बोला- 'कृपावतार! जो तथ्य प्राप्त हुए हैं, वे यथार्थ हैं। उनमें शंका नहीं की जा सकती। किन्तु एक निवेदन है कि आप शकडाल को कुछ सजा दें, उससे पूर्व उनसे कुछ पूछताछ अवश्य करें। इससे यह स्पष्ट हो जाएगा कि वे अपना अपराध स्वीकार करते हैं या आनाकारी करते हैं।'
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
१७८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org