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और आज.....
सम्राट् घननन्द की दृष्टि में अतीत का महान शकडाल आज मर चुका था। मगध के कल्याण के लिए खून बहाने वाला शकडाल आज मगध सिंहासन का कट्टर दुश्मन माना जाने लगा।
भाग्य का कैसा क्रूर परिहास!
पुत्र का विवाह निकट है। उत्साह और आनन्द से सारा वातावरण आप्लावित हो रहा है। चारों दिशाएं सुख, आनन्द और सन्तोष से मुखरित हो रही हैं।
और इसी समय भाग्य को प्रकंपित करने वाला अट्टहास सुनाई देता है। विधि कब किसको अपना शिकार बना लेती है, यह किसने जाना है ?
पुरुषार्थ की पांखों से अनन्त आकाश में उड़ने वाला शकडाल, बुद्धि और पवित्रता का प्रतिमान शकडाल आज हृदय में उठने वाले तूफान में फंसकर किंकर्तव्यविमूढ़ बन रहा है।
विचित्र है कर्म का विपाक!
शकडाल ने परिचारक से कहा- 'श्रीयक और उसकी बहनों को यहां भेज।'
वृद्ध शकडाल!
नन्हे-नन्हे बच्चों को छोड़ उसकी पत्नी चल बसी थी। एकपत्नीव्रत के रंग से रंगा हुआ शकडाल, मां की ममता को हृदय में संजोकर बच्चों का लालन-पालन करता रहा। उसके मन में ज्येष्ठ पुत्र स्थूलभद्र के प्रति अनेक आशाएं थीं। किन्तु स्थूलभद्र पिता के घर का त्याग कर एक राजनर्तकी से विवाह कर वहीं रहने लगा था। गुणवती कन्याओं ने विवाह करने से इनकार कर दिया था। वे अविवाहित रहकर पिता के पास ही रहती थीं। शकडाल की आशा श्रीयक पर टिकी थी। कुलीन कन्या के साथ उसका विवाह निश्चित हुआ। उत्साह-पूर्वक विवाह की तैयारी होने लगी। किन्तु नियति ने शकडाल की अन्तिम आशा पर तुषारापात कर डाला। ___कैसा तुषारापात! प्रलय से भी अधिक विकराल और विनाश से भी अधिक भयंकर। जीवन की उत्तर अवस्था में प्रलयंकारी विनाश! आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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