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धीरे-धीरे दोनों अश्व के पास गए। इतने में ही गजेन्द्र आता हुआ दिखाई दिया। स्थूलभद्र ने उसकी ओर देखकर कहा-'अपने स्वामी को संभाल। इसे सीधे नगर में ले जाना और राजवैद्य से तत्काल इसकी चिकित्सा कराना। इसको होश आ जाए तो कहना कि मन में यदि रोष रह गया हो तो स्थूलभद्र सदा तैयार है।'
गजेन्द्र ने भूमि की ओर म्लान नजर से देखा। उसका स्वामी सुकेतु धरती पर लहूलुहान होकर पड़ा था।
स्थूलभद्र और कोशा अश्व पर सवार होकर नगर में आए। चित्रा और माधवी प्रतीक्षा में पलकें बिछाए शोकाकुल बैठी थीं। स्वामी को देख वे उठीं, उनका अभिनन्दन किया। सारी बात जानकर उन्होंने मन ही मन कोशा के भाग्य को सराहा।
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आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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