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तू इस औषधि का पान करना। इक्कीस दिन तक केवल गाय के दूध पर रहना। औषधपान करने से पूर्व पहले दिन एक गोली ले लेना। यह गोली इस पात्र में रखी है। उस दिन पूर्ण उपवास करना। तेरा रूप, यौवन और स्मृति समृद्ध होगी।'
कोशा का मन इस उपहार से पुलकित हो उठा। उसने भैरवनाथ के चरणों में सिर झुकाया। भैरवनाथ ने उसके सिर पर हाथ रखकर कहा, 'पुत्री! जब कभी तुझे मेरी आवश्यकता महसूस हो तो तू यहां वैसे ही आ जाना जैसे एक पुत्री अपने पिता के घर आती है।'
कोशा का हृदय गद्गद हो गया। वह रथ में बैठकर घर की ओर चल पड़ी।
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आर्यस्थूलभद्र और कोशा
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