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हूँ। मैंने सुना है कि महामंत्री आजकल राजसभा में नहीं आते। क्या वे रोगग्रस्त हो गए हैं?'
___'वह बूढ़ा रोगग्रस्त हो, ऐसा लगता ही नहीं है। अभी वह अपने बेटे के विवाह की तैयारी में लगा हुआ है। वह अभी नये-नये शस्त्रों के निर्माण के प्रपंच में फंसा हुआ है।'
'शस्त्र!' वररुचि ने आश्चर्य से पूछा। 'हां, अत्यन्त तीक्ष्ण शस्त्र! नये-नये शस्त्र।' सुकेतु ने कहा। 'शस्त्र किसलिए?'
'विवाह में उपस्थित होने वाले राजपुरुषों को भेंट देने के लिए शस्त्रों का निर्माण हो रहा है। महामंत्री बहुत बुद्धिमान हैं। शस्त्रों का उपहार क्षत्रिय के लिए योग्य उपहार माना जाता है और वह रत्नों के उपहार से कम कीमती भी नहीं होता है।'
'क्या यह सच है कि महामंत्री शस्त्रों के निर्माण में लगे हैं?' वररुचि ने नयी आशा का पल्ला पकड़ते हुए कहा।
'इसमें तुम्हें आश्चर्य कैसे हो रहा है? तुमको विश्वास न हो तो तुम उसके घर जाओ और स्वयं देख आओ। शस्त्र-निर्माण में दक्ष कारीगर वहां कार्य कर रहे हैं।'
'बहुत अच्छा, बहुत अच्छा। मित्र! बहुत सफल सूत्र मिल गया।' 'कविता का नशा तो नहीं चढ़ा है?' सुकेतु ने हंसते हुए कहा।
'तुमने मुझे बहुत सरस समाचार सुनाए। सुकेतु! विजय अपनी होगी। मेरी आग बुझेगी। तुम्हारी आशा फलेगी और शकडाल सदा के लिए नष्ट हो जाएगा।' वररुचि ने आनन्द भरे स्वरों में कहा।
'भले आदमी ! कल्पना में मत बहो । वास्तविकता का स्पर्श करो। इसमें ऐसा क्या है कि तुम्हारी विजय हो और शकडाल का नाश हो?'
'महाराज! तुम बुद्धि के दांवपेंच नहीं समझ सकते । बोलो, क्या तुम मुझे पूरा सहयोग दोगे?'
'कविराज! तुम मुझे पागल बनाकर ही रखना चाहते हो। मेरा सहयोग है ही, किन्तुबताओ तो सही कि तुम किस बात पर इतने आनन्दित हो रहे हो?'
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आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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